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१२२ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि
सामान्य व्यक्तियो का आभामडल परिवर्तनशील होता है। यह भावधारा नित्य बदलती रहती है। व्यक्ति की भावधारा मे यह परिवर्तन आकर्षण-विकर्षण के कारण होता है। बाह्य तत्त्वो के प्रभाव मे व्यक्ति अपनी नियत भावधारा मे नही रहता है। सृष्टि के तत्त्व सतत उसकी भावधारा पर सक्रमण कर उसे विचलित करते रहते हैं। ___ असामान्य और निर्मल भावधारावाले व्यक्तियो पर अशुद्ध वायुमडल का सक्रमण नही होता है। यह अपने आप मे इतना सशक्त होता है कि यह अन्य भावधारा से प्रभावित नही होता, बल्कि यह अधिक बलवान होकर स्वय अन्यो को अपने से प्रभावित भी करता है। सम्पूर्ण वायुमडल को तरगित कर रूपातरित करता है। यही कारण है कि महापुरुषो का सान्निध्य हमे अल्फा तरगो से प्रभावित कर प्रसन्नता प्रदान करता है। इसमे से निकलती हुई तैजस्-रश्मिया अलौकिक और शान्त होती हैं।
एक ऐसी भी मान्यता है कि तीर्थंकरो के भामडल की निर्मल प्रतिच्छाया मे भव्यात्मा अपने पूर्वजन्म के तीन भव वर्तमान का एक और आगामी जन्म के तीन भव ऐसे सात भवो को देख सकता है।
नित्य उदित सृष्टि के सूर्य की किरणे विशेष काच मे सन्निहित कर लेने पर उस पर Solar Ras (सूर्य किरणे) ऊर्जा के रूप मे तरगित होकर आज अनेक कार्यों मे प्रगतिमय विकास का रूप ले रही है। तीर्थकरो का भामडल चैतन्य ऊर्जा से आदोलित होता है। अत इसके दर्शन से हमारी आवृत चेतनाशक्ति का शुद्ध मतिज्ञान श्रुतज्ञान के रूप मे अनावृत होकर विशुद्ध जातिस्मृति ज्ञान के रूप मे फलितार्थ होना सहज है।
भामण्डल के चिन्तन मे लीन आचार्यश्री को अचानक दिव्यध्वनि की सघन गर्जना सुनायी देती है और वे कहते हैं
स्वर्गापवर्ग-गममार्ग-विमार्गणेष्ट सद्धर्म-तत्त्व-कथनैक-पटुस्त्रिलोक्या.।
दिव्यध्वनि-र्भवति ते विशदार्थसर्वभाषास्वभाव-परिणाम-गुणै प्रयोज्य ॥ ३५॥
___ - देवलोक अपवर्ग
निर्वाण लोक को गममार्ग
- जाने के लिए विमार्गणेष्ट
- बताने मे अभीष्ट-सहायक त्रिलोक्या
तीनो लोको को सद्धर्मतत्त्वकथनैकपटु - सम्यक् धर्म के तत्त्वो के कथन करने मेनिपुण
-- विस्तृत, स्पष्ट
स्वर्ग
विशद्