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भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि
नाथ ।
त्रिभुवनार्तिहराय
तुभ्यम्
नम
क्षितितलामलभूषणाय
तुभ्यम्
नम
त्रिजगत परमेश्वराय
पृथ्वी तल के निर्मल उज्ज्वल अलकार रूप
तुम्हें / तुमको
नमस्कार हो
तीन जगत के
परम पद मे स्थित अरहत प्रभु
तुम्हें / तुमको
नमस्कार हो
जिनेश्वर
भवरूपी समुद्र या समुद्र जितने विशाल भवो
का शोषण करने वाले
तुभ्यम्
तुम्हें / तुमको
नम
नमस्कार हो ।
हे नाथ! आप तीनो लोको की अर्ति याने पीडा, व्यथा, वेदना, यातनाओ का हरयाने हरण करने वाले हो। कितना बडा चमत्कार। भावपूर्वक नमस्कार से सर्व दुखो का नाश | सिर्फ दुःख का नाश ही नही करते हैं आप क्षिति के निर्मल अलकार हो । हमारी शोभा हो, सुख और आनद के कारण हो । परम ऐश्वर्य स्वरूप हो और समुद्र जितने विशाल अनेक भवो का शोषण कर सहज सिद्ध स्वरूप की प्राप्ति करने वाले हो । ऐसे हे परमात्मा' आपको पुन - पुन नमस्कार हो ।
तुभ्यम्
नम
जिन
भवोदधिशोषणाय
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मुनीश । यदि नाम
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1
हे नाथ!
तीनो लोको की पीड़ा-व्यथा-वेदना कष्ट को हरण करने वाले
तुम्हें तुमको
नमस्कार हो
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भावपूर्वक इन नमस्कार से परमात्मा के गुण हममे प्रकट होते हैं और दोषो का क्षय होता है । अत कहते हैं
को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषैस्त्वं सवितो निरवकाशतया मुनीश । दोषैरुपात्त- विविधाश्रय जात-गर्वैः, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥ २७ ॥ हे मुनीश्वर ।
हमे ऐसा लगता है कि