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स्वरूप १०७
इसीलिये आगे कहते हैं - " विदित योगम्" । विदित योग का क्या मतलब होता है ? जिन्होने तीनो योगो का गोपन नही किया है प्रभु। आप उनके योगो को भी विदित याने जानते हो, जाननेवाले हो । ससार के सभी जीवो के मन वचन और काया के आप ज्ञाता हो, द्रष्टा हो । मै यह समझती हूँ कि परमात्मा के अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन को जिसने स्वीकार लिया है, मान लिया है उसके लिये ससार मे ऐसा कोई एकान्त स्थान नही जहा वह पाप कर सके । उसकी दृष्टि मे हर समय रहेगा कि वीतरागी, अनन्त ज्ञानी, अनन्त दर्शी मेरे सर्व योगो को जिसे ससार नही देखता उसे जानते और देखते हैं ।
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अब कहते हैं आप अनेक हैं। अनेक कैसे ? परमात्मा । अनेकान्त धर्म की प्ररूपणा आपके बिना कौन कर सकता है ? ससार के अनतधर्मी पदार्थों के अनेक स्वरूप के आप ज्ञाता और द्रष्टा हो। हम तो ससार को एक ही Angle से देखते हैं और जिस Angle से देखते हैं उसे उसी Angle से इतना सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि हमारे जैसा विद्वान इस ससार मे कोई नही है । लेकिन परमात्मा के अनेकान्त दर्शन की दृष्टि से देखेगे तो समझेगे कि परमात्मा अनन्त धर्म को एक पदार्थ मे देखते हैं अत एक ही पदार्थ अनेक रूपी, अनेक पर्याय नजर आता है ।
दूसरी तरह से अनेक आत्माए परमात्मा स्वरूप हैं। इस प्रकार आप अनेक स्वरूप हैं।
१८ अनेक कहने के बाद उलटा आ गया आप एक हो । अब एक कैसे हो सकते हैं ? आत्मा का उपयोग स्वरूप एक है। यहा आकर हम और परमात्मा एक हैं । अत बिलकुल अभेद हो गया। मेरे और तेरे मे कोई भेद नही है । मेरे और तेरे का भेद टूट रहा है, जैसे द्रव्यरूप से आत्मा का स्वरूप मेरा है वैसा ही द्रव्यरूप से आत्म स्वरूप तेरा है। मेरे और तेरे आत्मस्वरूप मे कोई अन्तर नहीं है ।
आप ज्ञान स्वरूप हो। ज्ञानावरणीयादि सर्व कर्मों का क्षय होने से आपके समस्त आत्मप्रदेश विशुद्ध ज्ञानस्वरूप हैं।
२० अमलम् याने आप निर्मल हो । अन्त कर दिया है, समाप्त कर दिया है कर्म का मल जिसने ऐसे आप हो ।
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अब परमात्म स्वरूप को व्याख्यायित करनेवाली तीसरी गाथा का प्रारंभ हो रहा है । " बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित बुद्धिबोधात् " में कहते हैं " विबुधार्चित बुद्धिबोधात्" । देखिये अब एक मजे की बात कहू आपको। आप अपनी किताब के पन्ने खोलेंगे तो अर्थों के माध्यम से विबुधार्चित शब्द जो पहले भी तीसरे श्लोक मे - " विबुधार्चित पादपीठ' रूप में आ चुका है। यहा है 'विबुधार्चित बुद्धिबोधात् ।' बुद्धया विनाऽपि की व्याख्या में हमने देखा था बुद्धि का मतलब