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प्रसन्नता ८९
विकाररूप राहु से ग्रसित हो जाने के कारण इसका निर्विकार सहज तेज आवरित हो जाता है। निर्विकार परम तेजरूप परमात्मा - सूर्य से सम्बन्ध स्थापित करने पर निर्विकार स्थिति प्रकट हो जाती है।
कर्मरूप बादलो के आवरणों में छिपा यह निज स्वरूप अप्रकट रहता है । सर्वथा कर्म रहित परमात्मा का सम्बन्ध होने पर कर्मों के कारणरूप अन्य सर्व सम्बन्ध छूट जाते हैं और आत्मा स्वय कभी कर्मरहित स्थिति प्राप्त कर परमात्म स्वरूप प्राप्त करता है।
क्षयोपशम भावों मे कभी सहज रूप से आलोकित होता है, कभी कर्मकषायो से अवरुद्ध होता है। लेकिन परमात्मारूप सूर्य का तेज प्राप्त कर शुद्ध निरजन आत्म चैतन्य को प्रकट करता है, प्रकाशित होता है।
इस पर से हम यह सोच सकते हैं कि जागतिक सूर्य के प्रकाश की गति एक सेकण्ड मे एक लाख छियासी हजार मील की है, तो आत्मरवि की गति कितनी तीव्र हो सकती है। ध्यान कें द्वारा वह शीघ्र ही अनन्तवीर्य सम्पन्न वीतराग का सान्निध्य प्राप्त कर तत्स्वरूप को प्राप्त कर सकता है।
जैन कथा साहित्य मे परमात्मा महावीर के परम शिष्य प्रथम गणधर श्री गौतम स्वामी का आत्मलब्धि के द्वारा सूर्य की किरणे पकड कर अष्टापद पर्वत पर आरोहण का विशेष प्रसग आता है। कुछ समय पूर्व कई श्रोता इस कथन मे शका करते थे कि यह कैसे सम्भव हो सकता है ? क्या सूर्य की किरणे भी पकड़ी जा सकती हैं ?
अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने जब प्रथम बार यह घटना सुनी तो सोचा । जैनो के इस कथन मे अवश्य कुछ तथ्य है। उन्होने खोज शुरू की और इसे सफल करते हुए प्रथम बार मरीनर ४ को मगल ग्रह की ओर छोड़ा। उसके चार Solar Panel के Bulbous पर सूर्य की किरणे गिरते ही वे अणुशक्ति के रूप में रूपातरित होती रही। इस प्रकार मरीनर ४ ने बत्तीस करोड़ माईल का प्रवास मात्र सूर्य की किरणें पकड़ कर किया था। यह मरीनर ४० न लोहे से निर्मित था। प्रश्न होता है यदि ४० टन लोहे का आकाश जहाज ३२ करोड़ माईल का प्रवास सूर्य की किरणें पकड़कर कर सकता है तो अनन्त लब्धि सम्पन्न गौतम स्वामी क्यो नहीं अष्टापद पर्वत पर आरोहण कर सकते ?
विदेशो मे कुछ ऐसे भी देश हैं जहाँ ६ महिने तक सूर्य का अस्त नहीं होता है और इसी प्रकार ६ महिने उदय भी नही होता। ऐसे देश मे ६ महिने निरतर दिन होते हैं, ६ महिने निरतर रात होती हैं। बड़े दिन और बड़ी रात हो वहाँ भी अस्त तो है, परन्तु जिस आत्मा ने परमात्मारूप सूर्य को अपने अन्त करण मे प्रकट कर लिया उनका कभी अस्त नही होता ।
सूर्य की तरह चन्द्र को भी उपमा का एक विशिष्ट साधन मानकर आचार्य श्री अगली पंक्ति में इन्हीं विचारधाराओं को चन्द्र के साथ वर्धमान करते हुए कहते हैंनित्योदय दलित- मोह-महान्धकार, गम्य न राहुवदनस्य न वारिदानाम् ।