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सम्यक् उपलभ्य मृत्युम् जयन्ति
स्वरूप ९९ - भलीभाँति (पूर्ण रूप से) - प्राप्त करके - मृत्यु को जीतते हैं (क्योंकि आप स्वय
मृत्युजय हो) - मोक्ष पद का, निर्वाण पद का, मुक्ति पदा
शिवपदस्य
का
पन्था
W
अन्य
- कोई दूसरा शिव
- प्रशस्त कल्याणकारी - मार्ग, रास्ता अथवा पथ
- नही है। (और) त्वामव्यय - विभुमचिन्त्य - मसख्यमाद्य, ब्रह्माण - मीश्वर - मनन्त-मनङ्गकेतुम्। योगीश्वर विदित - योग-मनेक-मेक,
ज्ञानस्वरूपममल प्रवदन्ति सन्त ॥२४॥ (भगवन्!)
- (परमात्मन्) सन्त
- सन्त पुरुष त्वाम्
- आपको अव्ययम्
- अव्यय, अक्षय, व्यय रहित ७ विभुम्
- व्यापक, उत्कृष्ट ऐश्वर्यवान् ८ अचिन्त्यम्
- अचिन्त्य, अदभुत, कल्पनातीत असंख्यम्
- असख्य, सख्यातीत १० आद्यम्
- आदि-पुरुष, आदि तीर्थकर, पच परमेष्ठी
में आदि अर्थात् अरहत देव ११ ब्रह्माणम्
- ब्रह्मा, ब्रह्म अर्थात् आत्मा, उसमें ही रमण
करने वाले, सकल कर्म रहित सिद्ध
परमेष्ठी १२ ईश्वरम्
- ईश्वर अर्थात् कृत्कृत्य, समस्त देवों के
स्वामी १३ अनन्तम्
- अन्त रहित, अनन्त गुण युक्त, अनन्त चतुष्टय सहित
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