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श्लोक - ११
१०. दर्शन
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अनुभूतिधारा की अखड श्रेणी मे प्रवेश पाने पर परमानन्द अवस्था का अनुभव होता है। परमात्मा के माथ के अभेद वधन ने देह के वधन का भेद प्रकट किया। ससार के सर्व दधनो की प्रियता टूट चुकी। परम आनन्द के दर्शन हुए। इस दर्शन में प्रसन्नता मूलक सारी अनुभूतियाँ जो आज तक अनछुयी थी वह एक रूप हो गई, प्रकट हो गई। ___ जजीरो से जकड़ी हुई मम्पूर्ण दैहिक अवम्याओं से सर्वथा पर होकर परमात्मा के दशी में लीन आचार्यश्री को जो उपलब्धि हो रही थी उसे पाने के लिए हमें आचार्यश्री के साथ मानसिक अभेद करना होगा और उसके द्वारा हम हमारे भीतर रहे हुए उस अद्भुत परमात्र स्वरूप के दर्शन करेंगे। इस दर्शन से आचार्यश्री की धारा प्रवाह निरन्तरता हमे उप प्रवाह मे दायेगी जहाँ आचार्यश्री की अपूर्व वाचा प्रकट हुई
दृष्ट्वा भवन्तमनिमेषविलोकनीय, नान्यत्र तोपमुपयाति जनस्य चक्षु । पीत्वा पय शशिकरघुतिदुग्धसिन्धो ,
क्षार जल जलनिधे रसितु क इच्छेत् ? ॥११॥ अनिमेषविलोकनीयम् - दिना पलक झुकाए हुए देखने योग्य अर्यात
___टकटकी लगाकर दर्शन करने योग्य (ऐसे) भवन्तम्
- आपको दृष्ट्या
- देख करके जनस्व
- मनुष्य का पा अन्यत्र
- और कही पर - सन्तोष को, परितोष को
- नही उपवाति
- प्राप्त करता है, पाता है दुग्धसिन्यो - हीर सागर के शभिकरपुति - चन्द्रमा नी किरण के समान कातिवाली मुत्र पर
- जल,हर, दुघ के
- नेत्र
तोपम्