________________
20 भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि ___आत्मा-परमात्मा की अभेद स्थिति की उपलब्धि का क्रम आगे के श्लोको से सयोजित होगा। जो हमारा अपना निज स्वरूप है फिर भी हमसे अगम्य है। हम उससे अनभिज्ञ या अनजान हैं, आइये हम श्लोक ११ के द्वारा उस स्वरूप के "दर्शन" करेंगे। अनजान को जानेगे और अनभिज्ञ को पाएगे।