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परिवर्तन ७९
इस बात को लेकर एक मनोवैज्ञानिक ने प्रयोग किया। उसने बिल्ली के मस्तिष्क को शान्त करने के लिए उसके सिर पर एक इलेक्ट्रोड लगाया और चूहे के मस्तिष्क को उत्तेजित करने के लिए उसके सिर पर भी इलेक्ट्रोड लगाया। उससे दोनों के मस्तिष्कीय विद्युत् मे परिवर्तन घटित हुआ । फलस्वरूप बिल्ली चूहे के सामने शान्त खड़ी हो गई और चूहा उस पर झपटने लगा, आक्रमण करने लगा। कितनी उल्टी बात। इस प्रकार आक्रमण के केन्द्र को बदलकर उसमे उपशमन लाया जा सकता है और उपशमन के केन्द्र को बदलकर उसमें आक्रामकता लाई जा सकती है। वीतरागी का ध्यान करने से आक्रामकता उपशमन में परिणमित होकर परिवर्तित हो जाती है।
इसी प्रकार शेर और खरगोश पर भी प्रयोग किया गया । वृत्तियो की अपेक्षा से शेर खरगोश बन गया और खरगोश शेर बन गया। शेर पर खरगोश आक्रमण करने लगा।
ये कल्पित कहानिया नहीं, प्रयुक्त प्रयोग हैं। इनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि आदमी को बदला जा सकता है रासायनिक परिवर्तनो के द्वारा और विद्युत् प्रकपनो के परिवर्तनों के द्वारा। यह असंभव नही है। परमात्मा के ध्यान मे परिवर्तन की महान शक्ति है।
इसी कारण आचार्य श्री इस तथ्य को नैसर्गिक परिवर्तन के एक महान सिद्धान्त को अगले श्लोक में प्रस्तुत कर रहे हैं।
नाथ ।
त्वम्
निर्धूमवर्ति अपवर्जिततैलपूर चलिताचलानाम्
मरुताम्
जातु
न गम्य
निर्धूमवर्तिरपवर्जिततैलपूर, कृत्स्न जगत्त्रयमिद प्रकटीकरोषि । गम्यो न जातु मरुता चलिताचलाना, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ | जगत्प्रकाश ॥ १६ ॥
स्वामिन्
इदं
कृत्स्न
जगत्त्रयम्
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आप
धुवा और वर्तिका (बाती) से रहित
लबालब तेल से रहित
पहाड़ों को डावाडोल करनेवाली
हवाओ से
कदाचित् कभी भी
प्रभावित होने योग्य नहीं हो, अर्थात् प्रवेश पाने के योग्य नहीं हो
इस
समस्त
तीनो लोकों को