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श्लोक-१०
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घटनाओं का होना बहुत स्वाभाविक है केवल आचार्यश्री पर ही नही, हम सबके ऊपर घटनाओं का नहीं आना ससार का एक आश्चर्य है, घटनाओं का आ जाना ससार की एक स्वाभाविकता है। ससार का कोई भी प्राणी, कोई व्यक्ति, कोई जीव ऐसा नहीं होगा जिसके ऊपर घटनाओं ने कभी प्रहार न किया हो। __घटनाओं मे घटनातीत रहना ससारियों के लिये आश्चर्य है। इसी कारण आचार्यश्री की वेड़ियों का टूट जाना हमारे लिए एक बहुत बड़ा आश्चर्य हो गया। जो हममें नहीं होता
और किसी विशेष मे वह हो जाना, आश्चर्य है। ___आश्चर्य को विशेष परिप्रेक्ष्य मे देखने पर हमें अद्भुतता प्राप्त होती है, वह यह कि आश्चर्य आचार्यश्री को भी धा और आश्चर्य तत्समय उपस्थित जनसमुदाय को भी था। लेकिन दोनों के आश्चर्य में बड़ा Differencc धा, अन्तर था। लोगों को आश्चर्य था विना साधनो के अनायास वेड़ियो के बंधन टूटने का और आचार्यश्री को आश्चर्य था परमात्मा के वीतराग दर्शन का। वीतरागी का वीतरागत्व रागी के लिए एक बहुत बड़ा आश्चर्य होता है। ___अधिकाश बाल-जीव परमात्मा की वाह्य विभूति से प्रभावित होते हैं और इस विभूति को देखकर इस प्रकार सोचते हैं कि हम उनको नमस्कार करेंगे तो हमें भी ऐसी विभूति प्राप्त होगी। इस वाह्य विभूति से परमात्मा का महत्त्व समझना हमारी सबसे बड़ी भ्रान्ति है। क्योंकि. परमात्मा की आन्तरिक विभूति उनका सबसे बड़ा वैभव है। सर्वश्रेष्ठ विभूति इस ससार की हमारे अरिहन्त और सिद्ध के पास होती है और वह है उनका वीतरागत्व। हमारा यह सबसे बड़ा सौभाग्य है कि सबसे पहले वीतरागता का दान, वीतरागता की समझ, वीतरागता के ख्याल, वीतरागता के सिद्धान्त और वीतराग बन जाने का सन्मार्ग हमे परमात्मा ने प्रस्तुत किया।
गौतम स्वामी ने परमात्मा महावीर से एक दार पूछा था-हे परमात्मन् । आप परमात्मा दन गये, हम सदको उपदेश देते हैं, लेकिन हम भी कभी परमात्मा दन सकते हैं क्या? परमात्मा ने कहा-दनना और होना इन दोनों में दड़ा Difference है। कोई परमात्मा दनता नहीं है,परमात्मा हो जाता है। तुम स्वय परमात्मा हो। आत्मा से परमात्मा हो जाना, अपने ही स्वभाव में आ जाना है।गौतम जिसने आत्मा का इस दाह्य वातावरण के साथ अभेद कर रखा है उसे शरीर पर होने वाली क्रियाओं की भावात्मक प्रतिक्रिया होती है। वह सारी देह पर्याय को आत्माम्प मानकर देह-स्वभाव को आत्ल पद में आरोपित करता है। परमाला पद याने इन भावात्मक प्रतिक्रियाओं से रहित हो जाना है।