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५० भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि
कमल
भक्तात्मा
पानी की बूँदे
शब्द
मोती
स्तवन - स्तोत्र
यहाँ बेड़ी का बधन आ जाना द्रव्यस्थिति है । उस द्रव्यस्थिति में घटनाओ के द्वारा स्वय को विचलित न होने देना, स्वय में स्थिर रहना तथा परमात्मभाव मे एकाग्र रहना भाव है। भाव जब परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित करते हैं तब परमात्मा के प्रभाव से बेडियो के बन्धन टूटते हैं। वर्तमान युग मे हमारी स्थिति ऐसी विचित्र है कि हम परमात्मा के प्रभाव को चुनौती देते हैं, परन्तु स्वय के भावो का कोई भरोसा नही है। बिना भावो का प्रभाव सभव नही है।
इन्ही प्रभावो को मुख्य लक्ष्य बनाकर हम भक्तामर स्तोत्र का मूल्याकन या आराधन करते हैं। भावो का अभाव प्रभाव के उद्देश्यो को पूर्ण नही कर पाता है। इसी अधूरेपन से कभी अधीरता बढ़ती है, कभी टूटती है। ऐसा अद्भुत स्तोत्र प्राप्त होने पर ऐसा क्यो होता है ? इस आश्चर्य का उत्तर श्लोक १० के द्वारा समझने का प्रयत्न करेंगे।