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भक्तामर स्तोत्र का परिचय ५ अव्यध्वनि के एक करोड़ वीस लाख कपन द्वारा खोपड़ी को खोले बिना, खून की एक बूँद गिराये बिना, दिमाग का Operation होता है। पानी और साबुन के बिना कपड़े धोये जाते हैं। बिना Refngerator के दूध और फल ताजे रखे जाते हैं । Washington Times के समाचार के अनुसार अमेरिका की Pensylvania University Hospital के एक Professor Dr Johan Dely और अन्य कुछ तबीबिओ ने इस पर अनुसधान शुरू किया है। उन्होने ऐसा सिद्ध किया है कि पारपरिक छुरी की अपेक्षा Ultra Sonic छुरी से Operation सरल रहता है। यह छुरी और कुछ नही परन्तु इसमे ध्वनि की सूक्ष्मातिसूक्ष्म लहरो को एक निश्चित प्रवाह मे तरगित करते हैं। रोगी के यकृत मे जिस स्थल पर खराव गाठ होती है उसके आस पास Ultra Sound को चलाने से अच्छे कोशो को नुकसान पहुँचाये विना शल्य क्रिया हो सकती है। सामान्यत उपयोग में ली जानेवाली छुरी का स्पर्श भी यहाँ नही होता है। डॉ जहोन के अनुसार २५ हजार डालर की कीमत वाले यत्र के विकास से यकृत की शल्यक्रिया निर्विघ्न और सरक्षात्मक हो गई है ।
दूसरे विश्वयुद्ध मे बोम्बर विमान बनाने वाले जर्मन निष्णातो ने देखा कि किसी विशेष कारण से विमान के तलभाग का जल्दी से नाश होता है । अनेक खोजो के बाद पता चला कि बोम्ब फेककर विमान दूर चला जाता है, फिर भी विस्फोट से आवाज की शक्ति सपन्न लहरें विमान के साथ टकराने से उसे नुकसान पहुँचता है।
रोगी को बिना वेहोश किए Lithotnpter भी शक्तिसपन्न ध्वनि संकेतो द्वारा पथरी (Stone) तोड़ने का काम करती है। रोगी को सीधा सुलाकर उसके कमर के नीचे रखी Highdrolic Tank मे गुर्दे (Kidney) पर सीधा प्रहार होता है। इसमे रोगी को न तो कोई पीड़ा होती है न किरणोत्सर्ग का कोई भय रहता है। इतना ही नही Stone तोड़ने की यह सम्पूर्ण प्रक्रिया Lithotripter Monitonng Unity मे Screen पर देख सकते हैं।
अत वैज्ञानिक दृष्टि से यह मान सकते हैं कि आचार्य श्री के ऐसे अपूर्व सर्जन से उनके लोहे की वेड़ियो के वधन टूट गये थे। परमात्मा के साथ भक्तिपूर्ण एकलीनता में उनका निजात्म स्वरूप प्रकट हुआ था। फलत लोहे की बेड़ियो के साथ परमार्थ को अवरुद्ध करने वाली उनके कर्मों की श्रृंखलाये भी टूट रही थीं।
ऐसा सब कुछ मान लेने पर भी एक प्रश्न होता है कि इन सबल कारणों से यह स्तोत्र श्रेष्ठ अवश्य है फिर भी इस श्रेष्ठता ने हममे क्या परिवर्तन किया ? लोहे की क्या, सूत के धागे का भी टूटने की जहा शक्यता नही हे वहाँ दर्शन- मोहनीय को तोड़कर परमार्थ की रहस्यात्मक अभेद धरा पर पहुँचने की तो आशा भी कैसे की जाय ? सर्जन किया मुनि ने, मुना परमात्मा ने, लोहे की बेड़िया टूटी मानतुगाचार्य की, हमे इस स्तोत्र से क्या लाभ? आचार्यश्री ने इस स्तोत्र से हमे क्या दिया ?
इन प्रश्नो पर जब म सोचती हूँ तब निसर्ग की नि सीमता मे इस स्तोत्र का नामकरण मुझे एक चिर स्थायी और सतुलित समाधान प्रस्तुत करता है कि यहाँ किसी की
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