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श्लोक १-२
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२. परमात्मा का परिचय
आज दूसरे प्रवचन के माध्यम से हम परिचय के द्वितीय परिच्छेद को अनावृत करेंगे। अत आज के प्रवचन का विषय है "परमात्मा का परिचय"।
यद्यपि परमात्मा का परिचय हमारा अपना परिचय है फिर भी यह इतना गहरा है, जिसके विना सारी साधना अधूरी है। कितने ही जन्म वीते हम अनेक परिचयो से जुडते गये, अनेक परिचयो से टूटते गये, लेकिन हम कभी नही मिला पाये, एक शाश्वत नित्य
और स्थायी परमात्म परिचय को, कभी नहीं जुटा पाये परमात्म-सवध को। ___ जो सम्पूर्ण इन्द्रियातीत हैं, सम्पूर्ण देहातीत हैं, समस्त वाह्य पर्यायों से जिनका सर्वथा सम्वन्ध-विच्छेद हो चुका है, उन्हें हमारी बुद्धि, शब्द या इन्द्रियो के विषय बनाकर परिचय पाना अत्यन्त दुरूह है इसीलिए आचाराग सूत्र मे कहा है
"सव्वे सरा णियट्टति। तक्का तत्थ ण विज्जई। मई तत्य ण गाहिया।
ओए अप्पइट्ठाणस खेयण्णे। से ण दीहे, ण हस्से, ण वट्टे, ण तसे, ण चउरंसे, ण परिमडले। ण किण्हे, न णीले, ण लोहिए, ण हालिदे, ण सुक्किल्ले। ण सुटिभगधे,ण दुरभिगन्धे। ण तिते, ण कडुए, ण कसाए, ण अविले, ण महुरे। ण कक्कडे,ण मउए, ण गुरुए, ण लहुए, ण सीए,ण उण्हे, ण गिद्धे,ण लुक्खे। ण काउ, ण रूहे, ण संगे। ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णहा परिणे सण्णे। उवमा ण विज्जए। अस्वी सता।"
-आचा शु १, अ ५, उद्दे ६, सु ५९२-५९४ (परम-आत्म-स्वरूप का वर्णन करने मे) सद शब्द लौट आते हैं, (जिनको जानने मे कोई तर्क सफल) नहीं होता है। बुद्धि द्वारा भी अग्राह्य है।
(वह अत्यन्त) आभा-(मय) होता है, वह अप्रतिष्ठान (मोक्ष) मय है, उसकी (फेवल) (ज्ञाता) (द्रष्टा) अवस्था होती है।
(परम-आत्मा) न वड़ा है, न छोटा है, न गोल है, न त्रिकोण है, न चतुष्कोण है, न परिमण्डल है।