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इस कार्य को प्रस्तुत करने में मूलग्रंथ के रूप में युवाचार्य मुनि मधुकर द्वारा सम्पादित व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (द्वितीय संस्करण) के भाग 1, 2, 3, 4 का प्रयोग किया गया है। संक्षिप्तिकरण के उद्देश्य से संदर्भ में व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के स्थान पर व्या. सू. का प्रयोग किया गया है। टंकण की सुविधा की दृष्टि से संदर्भ प्रत्येक अध्याय के अन्त में क्रमवार दिये हैं ।
अन्त में मैं यही विनम्र निवेदन करती हूँ कि भगवतीसूत्र ज्ञान का ऐसा रत्नाकर है जिसकी थाह पाना मुझ अज्ञानी के लिए असंभव सा कार्य है । अथक परिश्रम एवं अपने शोध-प्रबन्ध में आवश्यक संशोधन के पश्चात् ' भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन' प्रस्तुत कर रही हूँ । यद्यपि मैंने सावधानीपूर्वक अशुद्धियों के निराकरण का प्रयत्न किया है, फिर भी कतिपय अशुद्धियाँ रह गई हों तो इसमें मेरा प्रमाद ही दोषी है ।
जयपुर
26-08-2012
प्राक्कथन
डॉ० तारा डागा संयोजक
जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग, प्राकृत भारती अकादमी
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