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संस्थापक श्री डी. आर. मेहता के मार्गदर्शन में मुझे प्राकृत भारती अकादमी में 'प्राकृत-शिक्षण' करवाने का उत्तरदायित्व प्राप्त हुआ, जहाँ मैं प्राकृत के ग्रंथों को भाषिक एवं साहित्यिक दृष्टि से देखने-परखने के कार्य में संलग्न हुई। प्राकृत शिक्षण का कार्य करते-करते जैन धर्म व दर्शन के प्रति मेरी विशेष रुचि जागृत हुई। इसी बीच उदयपुर यात्रा के दौरान प्राकृत के मनीषी विद्वान प्रो. प्रेम सुमन जी जैन ने मुझे यह प्रेरणा प्रदान की कि पीएच. डी. करने से शिक्षण कार्य को एक नई गति प्राप्त होगी। तब मैंने शोध कार्य करने को प्राथमिकता दी। शीघ्र ही परमपूज्य गणाधिपति आचार्य तुलसी एवं मनीषी आचार्य महाप्रज्ञ जी के आशीर्वाद से संस्थापित जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं में भगवतीसत्र में प्रतिपादित धर्म-दर्शन जैसे गहन विषय पर मेरा पीएच. डी. हेतु पंजीयन हो गया। मैं इसे अपना सौभाग्य ही कहूँगी कि निर्देशक के रूप में मुझे जैन दर्शन एवं प्राकृत के विद्वान प्रो. सोगाणी साहब का एवं सह निर्देशक के रूप में प्राकृत विद्वान डॉ. हरिशंकर जी पाण्डेय का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
भगवतीसूत्र की विशालता व गहनता को देखते हुए मुझ अज्ञानी के लिए यह कार्य बहुत ही कठिन था, लेकिन प्रो. सोगाणी जी एवं प्रो. प्रेमसुमन जी की निरन्तर प्रेरणा व उनके मार्गदर्शन ने मुझमें ज्ञान की ज्योति को आलोकित किया। जब कभी कार्य की बोझिलता से मैं आक्रान्त हुई उन्होंने निराशा की धुंध में प्रकाश का मार्ग दिखाया। इन दोनों गुरुवरों ने मुझे न केवल ज्ञान ही दिया अपितु अच्छे आचार से भी संस्कारित किया। अपने इन दोनों ही गुरुवरों की कृपा के आगे मेरा हृदय सदैव नतमस्तक रहेगा। ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि उनकी प्रेरणा तथा मार्गदर्शन मेरे साथ जीवनपर्यन्त बना रहे।
प्रस्तुत कृति 'भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन' मेरे इसी शोधप्रबन्ध (पीएच.डी.) के आधार पर तैयार की गई है। मेरे शोध-प्रबन्ध को इस रूप में प्रस्तुत करने में प्राकृत भारती अकादमी के संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक श्रीमान् डी.आर.मेहता सा., सचिव श्रीमान् बी.आर.मेहता जी, सम्मान्य निदेशक महोपाध्याय विनयसागर जी, प्रबन्ध सम्पादक श्री सुरेन्द्र बोथरा जी का जो आत्मीयतापूर्ण प्रोत्साहन मुझे मिला उसके लिए मेरा आभार व्यक्त करना मात्र शाब्दिक औपचारिकता ही होगी। उनकी मैं सदा ही उपकृत रहूँगी। जैन विश्व भारती, लाडनूँ के पूर्व कुलपति डॉ० महावीरराज जी गेलड़ा की मैं हृदय से
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