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स्थिति में यह आवश्यक है कि रोचक शैली में स्वस्थ साहित्य प्रस्तुत किया जाये। बड़ी-बड़ी पुस्तकें दुरुह होने के साथ-साथ महंगी भी होती हैं । इस से इस प्रकार की छोटी पुस्तकें शायद ज्यादा प्रभावक बन सकेंगी ।
मुनि विजय कुमारजी ने कई विधाओं का स्पर्श किया है। उनकी प्रस्तुत कृति भी एक नये आकार प्रकार में प्रस्तुत हो रही है ।
कालू कल्याण केन्द्र, छापर २६ जनवरी, १६८
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मुनि सुखलाल
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