Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि हर विषय की व्याख्या में थोड़ा-बहुत प्रतिपाद्य छूटा है या यों कह दूं, लक्ष्य पूर्वक छोड़ा गया है । 'बात-बात में बोध' कैसे दिया जा सके व उसमें सरसता बराबर बनी रहे, यह मेरा मुख्य उद्देश्य रहा है। एक कवि ने कितना सुन्दर लिखा है "ज्यों केले के पात में, पात-पात में पात । त्यों सन्तों की बात में, बात बात में बात ।। केले के पत्ते में जिस तरह अनेक पले निकलते रहते है वैसे ही सन्तों की एक बात में नई-नई बातें निकलती रहती है। इस बातचीत की शैली में प्रसंग के अनुरूप छोटी-छोटी कथाओं का भी प्रयोग किया गया है। जिससे पाठक ऊब महसूस न करे। ___ इस कृति की निष्पत्ति के द्वारा मैं स्वयं को अत्यधिक लाभान्वित अनुभव कर रहा हूं। कुछ लिखने के बहाने मुझे अनेक ग्रंथों का स्वाध्याय करने का अवसर मिला। अनेक नई जानकारियां इस लेखन के द्वारा मुझे प्राप्त हुई। सबसे पहली परिचर्चा "जैन धर्म” पर लिखकर मैंने आचार्यवर को सुनाई। गुरुदेव के उत्साहवर्धक शब्दों ने मुझे आगे लिखने के लिए प्रेरित किया। अमृत पुरुष आचार्यवर की अमृतमयी करुणा दृष्टि ही इस सृजन की आत्मा है। प्रज्ञा के धनी युवाचार्यवर की शान रश्मियां मेरे जैसे नाकुछ शिष्य को भी आलोकित कर रही है, इसका मुझे आत्मतोष है। उन्होंने समय के अति अभाव के बावजूद कृति का अवलोकन कर आशीर्वचन लिखा। उनकी यह अपार वात्सलता मेरे जीवन का अमूल्य पाथेय है ।। पूज्य मुनि श्री सुमेरमलजी का बहुत बड़ा आलम्बन इस कृति में रहा है। उन्होंने इन समग्र चर्चाओं को ध्यानपूर्वक सुना, आवश्यक सुझाव दिये, हर उलझन को मिटाया। उनके इस सहयोग के प्रति कृतज्ञता जेसा शब्द छोटा ही पड़ता है। मुनिश्री सुखलालजी ने भी कृति का निरीक्षण कर इसे निखारने का प्रयास किया व विश्वास के रूप में भूमिका लिखकर मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाया है। "बात-बात में बोध” पढ़कर आज की युवा पीढ़ी, स्कूलों व कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थी जैन दर्शन के प्रति आकृष्ट होंगे, अपनी अमूल्य धरोहर को पहचानेंगे, ऐसी मेरी अपेक्षा है । मुनि विजय कुमार कालू कल्याण केन्द्र, छापर २६ जनवरी, १९८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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