Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रस्तावना
इसके अतिरिक्त प्रमेयकमलमार्तण्ड आदिकी रचनाशैली और इन टीकाओंकी रचनाशैलीको जब हम तुलनात्मक दृष्टिसे देखते हैं तो हमें उन दोनोंमें स्पष्ट भेद भी दिखाई देता है। इससे हम तो इसी निष्कर्षपर पहुंचते हैं कि समाधिशतक, रत्नकरण्डश्रावकाचार और आत्मानुशासन इन तीनों ग्रन्थोंपर टीका लिखनेवाले प्रभाचन्द्र उन प्रमेयकमलमार्तण्ड आदिके रचयिता प्रभाचन्द्रसे भिन्न हैं, तथा उनका रचनाकाल विक्रमको १३ वीं शतीका अन्तिम भाग अनुमान किया जाता है।
अन्य टोकायें इस संस्कृत टीकाके अतिरिक्त प्रस्तुत ग्रन्यके ऊपर अन्य निम्न टीकायें भी उपलब्ध हैं
१. गोम्मटसार आदि अनेक ग्रन्थोंके ऊपर ढूंढारी हिन्दी भाषामें विद्वत्तापूर्ण टीका लिखनेवाले तथा मोक्षमार्गप्रकाशकके मूल लेखक सुप्रसिद्ध पं. टोडरमलजीके द्वारा एक विस्तृत हिन्दी टीका आत्मानुशासनपर भी लिखी गई है जो प्रकाशित भी हो चुकी है । इस टोकामें प्रथमतः उन्होंने मूल श्लोकके अर्थको स्पष्ट करनेका प्रयत्न किया है और तत्पश्चात् प्रत्येक श्लोकके ऊपर भावार्थ लिखकर उसके अभिप्रायको स्पष्ट किया है । मूल ग्रन्थमें जहां अन्य वैदिक आदि ग्रन्थोंके उदाहरण दिये गये हैं वहां उन्होंने उनके सम्बन्धमें या तो कुछ लिखा ही नहीं है या कुछ काल्पनिक ही लिखा है । यथा -
'नेता यत्र बृहस्पतिः' आदि श्लोक (३२) की टीकामें 'अनुग्रहः खलु हरेः' का अर्थ विष्णुका अनुग्रह' न करके यह अर्थ किया है- अर हरि जो ईश्वर ताका अनुग्रह सहाय। साथ ही भावार्थमें यह लिख दिया है-- तहां वैष्णव मत अपेक्षा उदाहरण कह्या, देवतानिका इ.द्र बलवान् है सो तो भी दैत्यनिकरि संग्रामविर्षे हार्या । अथवा याहीका जैनमत अपेक्षा अर्थ कीजिये तो इन्द्रनामा विद्याधर भया, वाने मंत्री आदिकका बृहस्पति आदि नाम धर्या है सो बहुत पुरुषार्थकरि संयुक्त भया, सो भी रावणकरि हार्या।