Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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आत्मानुशासनम् संयमीके लिये दीपकका उदाहरण
१२०-२१ आगमज्ञानसे जीव अशुभको छोडकर शुभमें प्रवृत्त होता
हुआ शुद्ध हो जाता है, इसके लिये सूर्यका उदाहरण १२२ तप व श्रुतमें अनुराग रखता हुआ ज्ञानी जीव कैसे मुक्त हो सकता है, इसका उत्तर
१२३-२४ मुक्तिपथिककी सामग्री
१२५ इस मुक्तियात्रामें बाधक समझकर स्त्रीविषयक दोषोंका प्रदर्शन
१२६-३० तपस्यासे घृणित अवस्थाको प्राप्त हुए शरीरके धारक साधु
को स्त्रीविषयक अनुरागके छोडनेकी प्रेरणा स्त्रीके जघनरन्ध्रकी घृणित अवस्थाको दिखलाकर उसकी ओर आकृष्ट होनेवाले तपस्वियोंकी निन्दा
१३२-३४ महादेवका उदाहरण देकर स्त्रीकी विषसे भी भयानकता
का प्रदर्शन चन्द्र आदिकी समानताको धारण करनेवाले स्त्रीशरीरकी .अपेक्षा तो उन चन्द्र आदिसे ही अनुराग करना अच्छा है १३६ नपुंसक मन पुरुषको कैसे जीतता है
१३७ राज्यकी अपेक्षा तप विशेष पूज्य है
१३८ पुष्पोंको लक्ष्य करके तपोगुणसे भ्रष्ट हुए साधुओंकी निन्दा १३९ चन्द्रको लक्ष्य करके अनेक गुणयुक्त साधुके विद्यमान एक आध दोषकी निन्दा
१४० दोषोंको आच्छादित करनेवाले गुरुको अपेक्षा तो उन्हें बढा चढाकर प्रगट करनेवाला दुर्जन ही श्रेष्ठ है
१४१ गुरुके कठोर वचन भी भव्य जीवके मनको प्रफुल्लित
करते हैं वर्तमानमें धर्मका आचरण तो दूर रहा, उसका उपदेश
करनेवाले और सुननेवाले भी दुर्लभ हो गये हैं १४३ विवेकी जनके द्वारा प्रदर्शित दोष प्रीतिजनक तथा अविवेकी
जनके द्वारा की गई स्तुति भी अप्रीतिकर होती है १४४
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