Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 318
________________ -२२०] मायातो हानिप्रदर्शनम् २०२ सकृष्णः कृष्णोऽभूत्कपटबदुवेषेण नितरामपि च्छमाल्पं तद्विषमिव हि दुग्धस्य महतः ॥२२०॥ स्नेहिनां मध्ये लघुः । सकृष्ण मषीवर्णः कृष्णः वासुदेवः । कपटबटुः माबाबदुः। अपि हैं । आप लोगोंने पूर्वमें कौन-सा पुण्यकार्य किया है, उसे मुझे बतलाइये । मैं भी तदनुसार अनुष्ठान करके इस राजाको पत्नी होना चाहती हूं। यह सुनकर स्त्री-पर्यायकी निन्दा करते हुए सीताने जो उसे उपदेश दिया उससे हतोत्साह होकर वह वापिस चली गई । उसे निश्चय हो गया कि कदाचित् सुमेरु विचलित हो सकता है, पर सीताका मन विचलित नहीं हो सकता है ।सूर्पणखासे यह समाचार जानकर रावण उसके ऊपर क्रोधित होता हुआ, मारीचके साथ पुष्पक विमानपर आरूढ हुआ और उधर चल दिया। इस प्रकार चित्रकूट उद्यान में जाकर उसने मारीचको मणिमय सुन्दर हरिण बनकर सीताके सामनेसे जानेकी आज्ञा दी। तदनुसार उसके सीताके सामनेसे निकलनेपर उसे देखकर सीताकी उत्सुकता बढ गई । उसकी उत्सुकताको देखकर रामचन्द्र उसे पकडनेके लिये उसके पीछे चल पडे । इस प्रकार बहुत दूर जानेपर वह कपठी हरिण आकाशमें उडकर चला गया । उधर रावग रामचन्द्रके वेषमें सीताके पास पहुंचा और बोला कि हे प्रिये ! मैंने उस हरिणको पकड़ कर भेज दिया है। अब सन्ध्या हो गई है, इसलिये पालकी में सवार होकर नगरको वापिस चलें । यह कहते हुए उसने मायासे पुष्पक विमा. नको पालकोके रूपमें परिणत कर दिया और अपने आपको इस प्रकार दिखलाया जैसे रामचन्द्र घोडेपर चढकर पृथिवीपर चल रहे हों। इस प्रकार भोली सीता अज्ञानतासे उसपर चढ गई और तब रावण उसे संका ले गया। इस प्रकार सीताके अपहरणका कारण मारीचका वह कपटपूर्ण व्यवहार ही था जिसके कारण पृथिवीपर उसका अपयश फैला। 'अश्वत्थामा हतः' इस वाक्यका उच्चारण करनेवाले युधिष्ठिरका

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