Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
चारित्राराधनाया उपक्रमः
विषयविषभाशनोत्थितमोहज्वरजनिततीव्र तृष्णस्य । निःशक्तिकस्य भवतः प्रायः पेयाद्युपक्रमः श्रेयान् ॥ १७ ॥
- १७ ]
१९
मुक्तस्य । हितं सुखम् अहितं दुःखं तयोः प्राप्तिश्च अनाप्तिश्च प्राप्त्यनाप्ती तत्र मुग्धस्य उपायानभिज्ञस्य । इयं सम्यक्त्वाराधनारूपा अस्माभिः तव प्रथमा क्रियाक्रियते संस्कारो विधीयते । किविशिष्टा । सुकुमारा अक्लेशेन अनुष्ठातुं शक्त्या ॥१६॥ अयेदानीं चारित्राराधनाप्रदर्शनोपक्रमं कुर्वाणस्तदाराधयितुर्योग्यामेबाणुव्रतरूपां ताम् उपदर्शयन्नाह - - निषयेत्यादि । प्रकृतिविरुद्धम् अधिकभोजनं था विषमाशनम् | नो चेत्कालातिक्रमहीनं वा विषया एव विषमाशनम् । मोहः अप्रत्याख्यानावरणोदयलक्षणः चारित्रमोहः स एव ज्वरो मोहज्वरः । तृष्णा तृषा
न समझ सकनेवाले बालकके समान तेरे लिये यह सम्यक्त्वआराधनारूप सरल चिकित्सा की जाती है ।। विशेषार्थ --- जिस प्रकार कठिन रोगसे ग्रस्त हुआ बालक अपने हित-अहितको न समझ सकनेकें कारण जब उस रोगको नष्ट करनेवाली किसी तीक्ष्ण औषधिको नहीं लेना चाहता है तब चतुर वैद्य बताशा आदिमें औषधिको रखकर अथवा वस्त्र आदिमें उसका प्रयोग करके सरलतासे उसकी चिकित्सा करता है । उसी प्रकार मिथ्यात्वरूप रोगसे ग्रस्त हुआ प्राणी जब अपने हित-अहितका विवेक न होनेसे दुद्धर तपश्चरण आदिमें असमर्थ होता है तब उसके हितको चाहनेवाला गुरु सर्व प्रथम उसके लिये इस सम्यक्त्व आराधनाका उपदेश करता है । कारण कि इसका बह सरलतासे आराधना कर सकता है। इसके अतिरिक्त वह ( सम्यक्त्व) आगेकी क्रियाओं (संयम व तप आदि) का मूल कारण भी है ।। १६ ।। विषयरूप विषम भोजनसे उत्पन्न हुए मोहरूप ज्वरके निमित्तसे जो तीव्र तृष्णा (विषयाकांक्षा और प्यास) से सहित है तथा जिसकी शक्ति उत्तरोत्तर क्षीण हो रही है ऐसे तेरे लिये प्राय: पेय ( पीनेके योग्य सुपाच्य फलोंका रस आदि तथा अणुव्रत आदि) आदिकी चिकित्सा अधिक श्रेष्ठ होगी ॥ विशेषार्थ -- यदि कोई मनुष्य प्रकृतिके विरुद्ध अथवा मात्रासे अधिक भोजन करनेके कारण ज्वर आदिसे पीड़ित होकर तीव्र प्याससे व्याकुल होता है तो ऐसी अवस्थामें चतुर वैद्य