Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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चतुर्विधाराधनातो मुक्तिनिश्चिता
ज्ञानं यत्र पुरःसरं सहचरी लज्जा तपः संबलं चारित्रं शिबिका निवेशनभुवः स्वर्गा गुणा रक्षकाः
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निरुपद्रवा भवतीति दर्शयन्नाह - ज्ञानमित्यादि । यत्र याने 1। ज्ञानं पुरस्सरं मार्गप्रदर्शक - न्तया अग्रेसरम् । ज्ञानस्य च दर्शनपूर्वकत्वाद्दर्शनमप्यग्रेस रं सामर्थ्य सिद्धम् । सहचरी सखी । 'निवेशनभुवः निवासस्थानानि । गुणा वीतरागत्वादमः । मथा मोक्षमार्गः रत्नत्रयात्मकः ।
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मार्गदर्शक है, लज्जा मित्रके समान सदा साथ में रहनेवाली है, तपरूप पाथेय (मार्ग में खाने योग्य भोजन) है, चारित्र शिविका (पालकी) है, निवेशस्थान ( पडाव ) स्वर्ग है, रक्षा करनेवाले वीतरागता आदि गुण हैं, मार्ग ( रत्नत्रयरूप ) सरल ( मन, वचन व कायकी कुटिलतासे रहित) एवं शान्तिरूप प्रचुर जलसे परिपूर्ण है, तथा छाया दयाभावना है; वह यात्रा उस मुनिको विघ्न-बाधाओंसे रहित होकर अभीष्ट स्थानको प्राप्त कराती है || विशेषार्थ - जिस पथिकके पास सुपरिचित मार्गदर्शक हो, मित्र साथ में हो, नाश्ता पासमें हो, सवारी उत्तम हो, बीचमें ठहरनेका स्थान सुरक्षित हो, रक्षक साथमें हो; तथा मार्ग सरल (सीधा ), जलसे सहित एवं छायायुक्त सघन वृक्षोंसे व्याप्त हो; वह पथिक जिस प्रकार नव विघ्न-बाधाओं से रहित होकर निश्चित ही अपने अभीष्ट स्थानको पहुंच जाता है उसी प्रकार जिस मुक्ति पुरी के पथिकके पास ज्ञान मार्गदर्शक के समान है, पापवृत्ति से बचानेवाली लज्जा हितैषी मित्रके समान सदा साथमें रहनेवाली है, पाथेयका काम करनेवाला तप विद्यमान है, सवारीका काम करनेवाला चारित्र है, स्वर्ग पडावके समान हैं, उत्तम क्षमा आदि गुण राग-द्वेषादिरूप चारोंसे रक्षा करनेवाले हैं, तथा रत्नत्रय स्वरूप मार्ग सरल ( मन, वचन एवं कायकी कुटिलतासे रहित), शान्तिरूप जलसे परिपूर्ण एवं दयाभावनारूप छायासे सहित है; वह
1 ज स ज्ञाने ।