Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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विषय-सूची
१०९ शरीरकै स्वरूपको दिखलाकर उसके नष्ट होनेके पूर्व
उससे आत्मप्रयोजन सिद्ध कर लेनेकी प्रेरणा . १९४-५ शरीरको पुष्ट करके विषयसेवन करना विषभक्षण करके
जीवित रहनेकी इच्छाके समान है कलिकालमें वनको छोडकर गांवके समीप रहनेवाले __ मुनियोंके ऊपर खेद व्यक्त करना
१९७ स्त्रीकटाक्षोंके वशीभूत हुए तपस्वीसे तो मृहस्थ अवस्था ही कहीं अच्छी है
१९८ शरीरके होनेपर ही मनुष्य अपमानपूर्वक स्त्रीको प्राप्त करता है १९९ मूर्त शरीर और अमूर्त आत्मामें अभेद सम्भव नहीं है २०० शरीरका कुटुम्ब -
२०१ आत्मा और शरीरका स्वरूप दिखलाकर शुद्ध आत्माको अशुद्ध करनेवाले उक्त शरीरकी निन्दा
२०२ शरीरको अपवित्र जानकर उसका परित्याग करना बडे
साहसका काम है रोगादिके उपस्थित होनेपर भी यति खेदको प्राप्त नहीं होता तथा उसके अप्रतीकार्य होनेपर वह शरीरको ही छोड देता है
२०४-५ रोगादिके प्रतीकारमें कल्पित सुखका उदाहरण
२०६ अप्रतीकार्य रोगादिका प्रतीकार अनुद्वेग है
२०७ शरीरग्रहणका नाम संसार और उससे छुटकारा पानेका . नाम ही मुक्ति है .
२०८ आत्माको अस्पृश्य बनानेवाले सरीरकी निन्दा संसारी प्राणीके तीन भागोंका निर्देश करके तत्त्वज्ञका स्वरूपनिरूपण
२१०-१ तपश्चरणके अभावमें ज्ञानी जीवके लिये कषाय-शत्रुओंको ___ तो जीतना ही चाहिये
२१२ कषायजयके विना उत्तमक्षमा आदि गुणोंकी प्राप्ति ।
असम्भव है
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