Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
२३४
विषय-सूची
१११ पुनः रागको प्राप्त होता रहेगा तब तक वह कष्ट ही पाता रहेगा
२३२ जब तक मोक्ष प्राप्त नहीं होता तब तक जीव दुखी ही
रहता है मोक्षप्राप्तिके लिये सम्यक्त्वके साथ ज्ञान व चारित्रकी
आवश्यकता मोक्षार्थी जीवको अभोग्य व भोंग्य रूप विकल्पबुद्धिसे ., जब तक निवृत्य अर्थ है तबतक निवृत्तिका अभ्यास करना चाहिये
२३५-३६ प्रवृत्ति और निवृत्तिका स्वरूप
२३७ पूर्वमें अभावित भावनाओंका चिन्तन श्रेयस्कर है
२३८ शुभादि तीन और अशुभादि तीनमें हेय अशुभकी अपेक्षा
यद्यपि शुभ अनुष्ठेय है, फिर भी शुद्धका आश्रय लेनेके लिये वह शुभ भी त्याज्य ही है।
२३९-४० आत्माके अस्तित्व और उसकी बद्ध अवस्थाको दिखलाकर बन्ध व मोक्षके कारणोंकी प्ररूपणा
२४१ ममेदभाव इतिके समान अनिष्टकर है भवभ्रमणका कारण
२४३ बाह्य पदार्थोंमें अनुरक्त रहनेसे बन्ध तथा उनमें विरक्त होनेसे मोक्ष प्राप्त होता है
२४४ बन्ध व निर्जराकी हीनाधिकता
२४५ योगीका स्वरूप
२४६ गुणयुक्त तपमें उत्पन्न साधारण-सी भी क्षतिकी उपेक्षा नहीं करना चाहिये
२४७ यतिको गृहकी उपमा देकर रागादिरूप सॉंसे सावधान रहनेकी प्रेरणा
२४८ परनिन्दासे राग-द्वेषादि पुष्ट होते हैं दोषदर्शी दुर्जन किसी एक आध दोषसे संयुक्त अनेक
गुणयुक्त महात्माके स्थानको नहीं पाता है
२४२
०४९
२५०