Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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आत्मानुशासनम्
योगीको अपना पूर्व आचरण अज्ञानतापूर्ण प्रतीत होता है . २५१ शरीरमें भी ममत्वबुद्धि रहने से तपस्वियोंकी भी आशा पुष्ट होती है
२५२ अभेदस्वरूपसे स्थित भी शरीर और आत्मामें भेद है, __ इसके लिये उदाहरण
२५३ मोक्षाकांक्षियोंने सन्तापका कारण जानकर शरीरको छोडा है और आत्यन्तिक सुख प्राप्त किया है
२५४ जिन्होंने मोहको नष्ट कर दिया उन्हींका परलोक विशुद्ध होता है
२५५ साधु आपत्तिके ससय भी सदा सुखी रहते हैं . २५६-५७ वे साधु सिंहके समान निर्भय होकर भयानक पर्वतकी. गुफाओंमें ध्यान करते हैं
२५८ मोक्षार्थी निःस्पृह साधुओंकी प्रशंसा
२५९-६२ सुख और दुखमें उदासीनता संवर और निर्जराकी कारण है
२६३ यतिका आचार आश्चर्यजनक है ।
२६४ मुक्ति अवस्थामें ज्ञानादि गुणोंका अभाव हो जाता है, इस वैशेषिक मतमें दूषण
२६५ जीवका स्वरूप
२६६ सिद्धोंका सुख
२६७ आत्मानुशासनके चिन्तनका फल
२६८ ग्रन्थकर्ता द्वारा गुरुके नामस्मरणपूर्वक आत्मानुशासनके कारूपसे निजनामका प्रकाशन
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