Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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विचार-सूची कृष्णराजके भाण्डागारके समान धर्मका स्वरूप सबको
गम्य नहीं है परोपकारी यतिजन सदुपदेशों द्वारा भव्य जीवोंको शरीरादिसे विरक्त किया करते हैं
९७-८ गर्भावस्थामें स्थित प्राणीकी शोचनीय अवस्था आत्मघातक कायाको करनेवाले संसारी मिथ्यादृष्टि जीवोंको
जो सुख प्राप्त होता है वह अन्धकवर्तकीय न्यायसे प्राप्त होता है कामकृत दुरवस्था तीन प्रकारके लक्ष्मीत्यागियोंमें तरतमता विरक्तिसे सम्पत्तिकें परित्यागमें आश्चर्य नहीं है, इसके लिये दृष्टान्त
१०३ लक्ष्मीके परित्यागमें जहां अज्ञानीको शोक और पुरुषार्थीको
विशिष्ट गर्व होता है वहा तत्त्वज्ञके वे दोनों ही नहीं होते १०४ विवेकी जन दुष्ट संगतिके समान शरीरके परित्यागमें __ खेदका अनुभव नहीं करते
१०५ मिथ्याज्ञान एवं रागादि जनित प्रवृत्ति तथा तद्विपरीत प्रवृत्ति
के फलका दिग्दर्शन दया-दम आदिके मार्ग में प्रवृत्त होनेकी प्रेरणा सोदाहरण विवेकपूर्वक किये गये परित्यागका फल कौमार ब्रह्मचारीके नमस्कार । योगिगम्य परमात्माके रहस्यका निरूपण
११० तप व मोक्षकी प्राप्ति मनुष्य पर्यायमें ही सम्भव है समाधिकी सुलभता तपको छोडकर दूसरा कोई मनोरथका साधक नहीं है मनुष्य तापके संहारक तपमें क्यों नहीं रमता है. तपश्चरणपूर्वक शरीरको छोडनेवाले संन्यासीकी प्रशंसा वैराग्यके कारणभूत ज्ञानकी प्रशंसा -
११६-१७ कष्टसहनमें आदिनाथ जिनेन्द्रका उदाहरण
११८-१९
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