Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रस्तावना
यह अतिशयोक्तिसे अनुप्राणित अर्थान्तरन्यास अलंकारका उदाहरण है--
क्षितिजलधिभिः संख्यातीतैर्बहिः पवनस्त्रिभिः परिवृतमतः खेनाधस्तात् खलासुरनारकान् । उपरिदिविजान् मध्ये कृत्वा नरान् विधिमन्त्रिणा
पतिरपि नृणां त्राता नको ह्यलयतमोऽन्तकः ॥ ७५ ॥
यहां विधि-मन्त्रीके द्वारा मनुष्योंके संरक्षणके लिए उक्त सामग्रीकी योजनाकी कल्पना असम्बन्ध सम्बन्धरूप अतिशयोक्ति अलंकार है और उसीके द्वारा ' ह्यलयतमोऽन्तक: ' उक्तिकी सिद्धि की गई है, जिससे यहां अर्थान्तरन्यास अलंकार १ बना है।
जन्म-तालद्रुमाज्जन्तु-फलानि प्रच्युतान्यधः ।
अप्राप्य मृत्यु-भूमागमन्तरे स्युः कियच्चिरम् ॥ ७४ ।। यह रूपकालंकारसे अलंकृत है२ ।
पलितच्छलेन देहान्निर्गच्छति शुद्धिरेव तव बुद्धः ।
कथमिव परलोकार्थ जरी वराकस्तदा स्मरति ॥ ८६ ॥ यहां पलितको छल कहकर बुद्धिके नेमल्यकी कल्पना की जानेसे अपन्हुति अलंकार समझना चाहिये३ ।।
पुरा शिरसि धार्यन्ते पुष्पाणि विबुधैरपि ।
पश्चात् पादोऽपि नास्प्राक्षीत् किं न कुर्याद् गुणक्षतिः॥१३९।। यहां अप्रकृत पुष्पोंकी गुणहीनताको दिखलाकर तपोभ्रष्ट साधुओंकी निन्दा की गई है,अतएव यह अप्रस्तुतप्रशंसालंकारसे अलंकृत है।।
१. अर्थान्तिरन्यासके ये उदाहरण भी देखे जा सकते हैं- ४४, ७६,९३,११८,११९,१३६,१३९ आदि ।
२. रूपकालंकारके अन्य भी उदाहरण सुलभ हैं । यथा-८७, . १३२,१७०,१८३ आदि ।
३. अपन्हुतिके उदाहरण स्वरूप १२६ आदि अन्य भी श्लोक देखने योग्य हैं।
४. इसके श्लोक १४० आदि अन्य भी उदाहरण हैं ।