Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रस्तावना
२९
व्याख्या करनेसे - उसके ऊपर टीका रचनेसे- इन प्रभाचन्द्रकी कीर्तिका विस्तार हुआ था। उन शुभकीतिके एक दूसरे भी धर्मभूषण नामके शिष्य थे। उपर्युक्त जैन सिद्धान्तभास्करकी चतुर्थ किरणमें प्रकाशित नन्दिसंघकी पट्टावलीके आचार्योंकी नामावलीमें प्रभाचन्द्रके पट्टारोहणका काल वि. सं. १३१० दिया गया है । इसके पश्चात् उनके होनेकी सम्भावना नहीं है, क्योंकि, कारंजाके बलात्कारगण मंदिरमें जो शास्त्र-भण्डार है उसमें उपर्युक्त प्रभाचन्द्रके द्वारा विरचित रत्नकरण्डश्रावकाचारकी टीकाकी एक प्रति वि. सं. १४१५ की मौजूद है२ ।
कितने ही विद्वान् यह समझते हैं कि रत्नकरण्डश्रावकाचारके ऊपर टीका लिखनेवाले प्रभाचन्द्र वे ही प्रभाचन्द्र हैं कि जिन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र जैसे टीकाग्रन्थोंको रचा है । इसके लिये वे यह हेतु देते हैं कि उन्होंने उक्त ग्रन्थके 'क्षुत्पिपासा' आदि श्लोककी टीकामें केवलीके कवलाहरका खण्डन करते हुए प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रमें उक्त विषयकी विशेष प्ररूपणा करनेका निम्न प्रकारसे निर्देश किया है
तदलमतिप्रसंगेन प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे च प्रपञ्चतः प्ररूपणात् ।
परन्तु इस वाक्यके द्वारा वहां केवल यह भाव दिखलाया गया है कि इस विषयका विशेष विवरण उक्त दोनों ग्रन्थोंमें किया गया है, अतः विशेष जिज्ञासुओंको उसे वहां देखना चाहिये । उक्त वाक्य में ऐसा कोई पद ('मया' या 'अस्माभिः' आदि) नहीं है जिससे कि यह निश्चय किया जा सके कि वह प्ररूपणा वहां इन्हीं प्रभाचन्द्रने की है।
इसके अतिरिक्त आत्मानुशासनमें कुछ श्लोक (१७१-७४, २६५-६६) ऐसे आये हैं कि जिनके ऊपर टीका करते हुए तर्कणाको शैलीसे बहुत कुछ लिखा जा सकता था। परन्तु वहां विशेष कुछ भी
१. र. पा. की प्रस्तावना पृ. ६३-६५. २. र. पा. को प्रस्तावना पृ. ६७.