Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
२८
आत्मानुशासनम्
सं. १०४५ (वि. सं. ११८०) में हुआ है१ । इससे श्री पद्मनन्दी मुनि १२वीं शताद्वीके उत्तरार्धवर्ती विद्वान् प्रतीत होते हैं। अब चूंकि प्रभाचंद्रने रत्नकरंडकी टीकाम उक्त मुनि पद्मनंदीके उपर्युक्त दो श्लोकोंको उद्धृत किया है, अत एव वे पद्मनंदीके भी उत्तरकालीन विद्वान् सिद्ध होते है ।
इस उत्तरकालकी अवधिका विचार करते हुए हमें उपर्युक्त पं. आशाधरजीकी अनगारधर्मामतको टाकामें ही इन प्रभाचन्द्रका स्पष्टतया नामनिर्देश उपलब्ध होता है । यथा
यथाहुस्तत्र भगवन्तः श्रीमत्प्रभेदुपादा रत्नकरण्डकटीकायां चतुरावर्तत्रितय इत्यादिसूत्रे द्विनिषद्य इत्यस्य व्याख्याने -देववन्दनां कुर्वता हि प्रारम्भे समाप्तौ चोपविश्य प्रणामः कर्तव्य इति२।
इस उल्लेखसे ऐसा प्रतीत होता है कि समाधिशतक, रत्नकरण्डश्रावकाचार और आत्मानुशासन इन तीनों ग्रन्थोंके ऊपर टीका लिखनेवाले वे प्रभाचन्द्र पं. आशाधरजीके समसमयवर्ती रहे हैं। कारण कि हम यह ऊपर लिख ही चुके हैं कि उक्त अनगार धर्मामृतको टीका वि. सं. १३०० में बनकर समाप्त हुई है।
जैनसिद्धान्त भास्करकी चतुर्थ किरणमें प्रकाशित शभचन्द्रकी गुर्वावलीके आधारसे जैसा कि मुख्तार सा. ने लिखा है, ये प्रभाचन्द्र उन शुभकीर्तिके पट्टशिष्य थे जो वनवासी आम्नायके थे तथा वे (प्रभाचन्द्र)विक्रमकी १३वीं और१४वीं शताबीके विद्वान् थे३ । इस गुर्वावलीके . एक पद्यसे ४ ज्ञात होता है कि पूज्यपादके शास्त्र (समाधिशतक) को १. देखिये सटीक रत्नकरण्डकी प्रस्तावना पृ. ७५ २. देखिये अनगारधर्मामृतकी टीका श्लोक ८-९३ तथा रत्नकरण्ड
श्रावकाचार टीका श्लोक ५-१८.. ३. र. श्रा. की प्रस्तावना पृ. ६३-६५, ४. पट्टे श्रीरत्नकीर्तेरनुपमतपसः पूज्यपादीयशास्त्रव्याख्याविख्यातकोतिर्गुणगणनिधिपः सत्क्रियाचारुचञ्चुः । श्रीमानानन्दधामा प्रतिबुधनुतमा मानसंदायिवादो जीयादाचन्द्रतारं नरपतिविदितः श्रीप्रभाचन्द्रदेवः ॥