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Shri Ashtapad Maha Tirth
२३६/२. 'वर-कणगतवियगोरा,१५ सोलसतित्थंकरा मुणेयव्वा ।
एसो वण्णविभागो, चउवीसाए जिणवराणं ।। चौबीस तीर्थङ्करों का वर्ण-विभाग इस प्रकार है
. पद्मप्रभ तथा वासुपूज्य-रक्त वर्ण।
चन्द्रप्रभ तथा पुष्षदंत-चन्द्रमा की भाँति गौर वर्ण। मुनिसुव्रत तथा नेमि-कृष्ण वर्ण। पार्श्व और मल्लि-प्रिंयगु के समान आभा वाले (विनील)। . शेष सोलह तीर्थंकर-शुद्ध और तप्त कनक की भाँति स्वर्णाभ ।
२३६/३. पंचेव अद्धपंचम, चत्तारऽद्धट्ठ तह तिगं चेव ।
अढाइज्जा दोण्णि य, दिवड्डमेगं धणुसतं च।। २३६/४. नउई असीइ सत्तरि, सट्ठी पण्णास होति नायव्वा।
पणयाल चत्त पणतीस, तीस पणवीस वीसा य॥ २३६/५. पण्णरस दस धणूणि य, नव पासो सत्तरयणिओ वीरो।
नामा पुव्वुत्ता खलु, तित्थगराणं मुणेयव्वा ।। तीर्थङ्करों का देह-परिमाण इस प्रकार जानना चाहिए१. ५०० धनुष्य २. ४५० धनुष्य
३. ४०० धनुष्य ४. ३५० धनुष्य ५. ३०० धनुष्य
६. २५० धनुष्य ७. २०० धनुष्य ८. १५० धनुष्य
९. १०० धनुष्य १०. ९० धनुष्य ११. ८० धनुष्य १२. ७० धनुष्य १३. ६० धनुष्य १४. ५० धनुष्य
१५. ४५ धनुष्य १६. ४० धनुष्य १७. ३५ धनुष्य १८. ३० धनुष्य १९. २५ धनुष्य २०. २० धनुष्य
२१. १५ धनुष्य २२. १० धनुष्य २३. ९ रत्नि
२४. ७ रत्नि २३६/६. मुणिसुव्वओ य अरिहा, अरिट्ठनेमी य गोयमसगोत्ता।
सेसा तित्थगरा खलु, कासवगोत्ता मुणेयव्वा॥ मुनिसुव्रत तथा अर्हत् अरिष्टनेमि गोतम गोत्रीय तथा शेष तीर्थङ्कर काश्यपगोत्री थे। २४३. तत्थ मरीईनाम, आदिपरिव्वायगो उसभनत्ता।
सज्झाणजुत्तो९, एगंते झायइ२० महप्पा।। (भरत ने ऋषभ से पूछा-इस धर्म परिषद् में क्या कोई ऐसा व्यक्ति है, जो भविष्य में तीर्थङ्कर होगा?) उस परिषद् में आदि परिव्राजक मरीचि था। वह भगवान् ऋषभ का पौत्र, स्वाध्याय और ध्यान से युक्त तथा एकान्त में चिन्तन करने वाला महात्मा था। १५. वरतवियकणग (अ, ला)। १६. इस गाथा के बाद प्रायः सभी हस्तप्रतियों में अन्या. व्या. उल्लेख के साथ निम्न अन्यकर्तृकी गाथा मिलती हैं
उसभो पंचधणुसयं, नव पासो सत्तरयणिओ वीरो।
सेसट्ठ पंच अट्ठ य, पण्णा दस पंच परिहीणा ।। १७. नामा (ब, म, हा, दी, ला)। १८. दत्ता (अ, ला, रा)। १९. जुओ (म)।
२०. अच्छति (स्वो ३०४/१७६८)। Aavashyak Niryukti
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