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Shri Ashtapad Maha Tirth
हिरण्यगर्भ, प्रजापति, लोकेश, नाभिज, चतुरानन, स्रष्टा, स्वयम्भू । इनकी यथार्थ संगति भगवान् ऋषभदेव के साथ ही बैठती है। जैसे :
हिरण्यगर्भ - जब भगवान् माता मरूदेवी के गर्भ में आये थे, उसके छह माह पहले से अयोध्या
नगर में हिरण्य-सुवर्ण तथा रत्नों की वर्षा होने लगी थी, इसलिए आपका हिरण्यगर्भ
नाम सार्थक है। प्रजापति - कल्पवृक्षों के नष्ट हो जाने के बाद असि, मसि, कृषि आदि छह कर्मों का उपदेश
देकर आपने ही प्रजा की रक्षा की थी, इसलिए आप प्रजापति कहलाते थे। लोकेश - समस्त लोक के स्वामी थे, इसलिये लोकेश कहलाते थे। नाभिज - नाभिराज नामक चौदहवें मनु से उत्पन्न हुए थे, इसलिए नाभिज कहलाते थे। चतुरानन - समवसरण में चारों ओर से आपका दर्शन होता था, इसलिए आप चतुरानन कहे
जाते थे। स्रष्टा - भोगभूमि नष्ट होने के बाद देश, नगर आदि का विभाग, राजा, प्रजा, गुरु, शिष्य
आदि का व्यवहार, विवाह-प्रथा आदि के आप आद्य प्रवर्तक थे, इसलिए स्रष्टा कहे
जाते थे। स्वयंभू - दर्शन-विशुद्धि आदि भावनाओं से अपने आत्मा के गुणों का विकास कर स्वयं ही
आद्य तीर्थंकर हए थे, इसलिए स्वयंभू कहलाते थे।
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Adipuran