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Shri Ashtapad Maha Tirth
भीतिरहित हैं, मनोगुप्ति रूपी सर्प परिकर से वेष्टित हैं, निरन्तर सत्यवाणी रूपी विकट जटा-कलाप से मण्डित हैं तथा हुंकार मात्र से भय का विनाश करने वाले हैं।
" आचार्य वीरसेन स्वामी ने धवला टीका में अर्हन्तों का पौराणिक शिव के रूप में उल्लेख किया है और कहा है कि अर्हन्त परमेष्ठी वे हैं जिन्होंने मोह रूपी वृक्ष को जला दिया है, जो विशाल अज्ञानरूपी पारावार से उत्तीर्ण हो चुके हैं। जिन्होंने विघ्नों के समूह को नष्ट कर दिया है, जो सम्पूर्ण बाधाओं से निर्मुक्त हैं, जो अचल हैं, जिन्होंने कामदेव के प्रभाव को दलित कर दिया है, जिन्होंने त्रिपुर अर्थात् मोह, राग, द्वेष को अच्छी तरह से भस्म कर दिया है। जिन्होंने सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, और सम्यक्चारित्र रूपी त्रिशूल को धारण करके मोहरूपी अन्धकासुर के कबन्धवृन्द का हरण कर लिया है तथा जिन्होंने सम्पूर्ण आत्मरूप को प्राप्त कर लिया है।"
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"महाकवि पुष्पदन्त ने भी अपने महापुराण में एक स्थल पर भगवान् वृषभदेव के लिये रुद्र की ब्रह्मा-विष्णु-महेश रूपी त्रिमूर्ति से सम्बन्धित अनेक विशेषणों का प्रयोग किया है। भगवान् का यह एक स्तवन है जिसे उनके केवलज्ञान होने के बाद इन्द्र ने प्रस्तुत किया है। जिसमें उन्होंने भगवान् के लिये कहा है कि वे शान्त हैं, शिव हैं, अहिंसक हैं, राजन्य वर्ग उनके चरणों की पूजा करता है । परोपकारी हैं, भय दूर करने वाले हैं, वामाविमुक्त हैं, मिध्यादर्शन के विनाशक हैं, स्वयं बुद्ध रूप से सम्पन्न हैं, स्वयंभू हैं, सर्वज्ञ हैं, सुख तथा शान्तिकारी शंकर हैं, चन्द्रधर हैं, सूर्य हैं, रुद्र हैं, उग्र तपस्यों में अग्रगामी हैं, संसार के स्वामी हैं, तथा उसे उपशान्त करने वाले हैं, महादेव हैं...... प्रलयकाल के लिये उग्रकाल हैं, गणेश (गणधरों के स्वामी) हैं, गणपतियों (वृषभसेन आदि गणधरों) के जनक हैं, ब्रह्म हैं, ब्रह्मचारी हैं, वेदांगवादी हैं, कमलयोनि हैं, पृथ्वी का उद्धार करने वाले आदि वराह हैं, हिरण्य गर्म हैं, परमानन्द चतुष्टय (अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख तथा अनन्त वीर्य) से सुशोभित हैं। खजुराहो के इस संस्तवन से यह प्रतीत होता है कि भगवान् वृषभदेव के रूप में शिव के त्रिमूर्ति तथा बुद्ध रूप को भी समन्वित कर लिया गया । १००० ई० के शिलालेख नम्बर ५ में शिव का एकेश्वर रूप में तथा विष्णु बुद्ध और जिन का उन्हीं के अवतारों के रूप में उल्लेख किया जाना इसी तथ्य की पुष्टि करता है । "
वैदिक परम्परा में शिव का वाहन वृषभ (बैल) बतलाया गया है जैन मान्यतानुसार भगवान् वृषभदेव का चिह्न बैल है। गर्भ में अवतरित होने के समय इनकी माता मरुदेवी ने स्वप्न में एक वरिष्ठ वृषभ को अपने मुख कमल में प्रवेश करते हुए देखा था, अतः इनका नाम वृषभ रखा गया। सिन्धुघाटी में प्राप्त वृषभांकित मूर्तियुक्त मुद्राएँ तथा वैदिक युक्तियाँ भी वृषभांकित वृषभदेव के अस्तित्व की समर्थक हैं। इस प्रकार वृषभ का योग शिव तथा वृषभदेव के ऐक्य को सम्पुष्ट करता है। जैनाचार्य हेमचन्द्र सूरि ने सोमेश्वर के
शिव मन्दिर में जाकर महादेव स्त्रोत की रचना कर शिव की रागद्वेष रहित निर्विकार वीतराग सर्वज्ञदेव के रूप में स्तुति की थी। ऋषभ शिव कैसे बने इस विषय पर ईशान संहिता में लिखा है।
माघ वदि त्रयोदश्यादि देवो महानिशि । शिवलिंग तयोभूतः कोटिसूर्य समप्रभः ।।
अर्थात्- माघ वदि त्रयोदशी की महानिशा को आदि देव ऋषभ करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए। शिवपुराण में भी लिखा है
“इत्थं प्रभवः ऋषभोऽवतारः शंकरस्य मे । सतां गतिर्दीनबन्धुर्नवमः कथितस्तु नः ।। "
शिवपुराण ४।४९ मुझे शंकर का ऋषभ अवतार होगा। वह सज्जन लोगों की शरण और दीनबन्धु होगा तथा उसका अवतार नवां होगा ।
Adinath Rishabhdev and Ashtapad
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