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Shri Ashtapad Maha Tirth.
umbrella. It is ascribed to the 7th and 8th century" - ( History of Indian & Eastern Architecture. Pg. 342 of Vol II) लामचीदास के अनुसार तिब्बत में भावरे और सोहना जाति के जैनी रहते थे। उन्होंने तेले की तपस्या कर यक्ष की सहायता से अष्टापद तीर्थ के दर्शन किये थे जिसके विवरण में उन्होंने बताया है कि ऋषभदेव के टोंक में चरण बने हुए हैं । इसकी पुष्टि स्वामी आनन्द भैरव गिरिजी ने श्री किरीट भाई को लिखे पत्र में की है जिसमें उन्होंने अपनी कैलाश यात्रा के विषय में लिखा है ।
At the end he wrote:
"A good devotee can enjoy the blessful and beautiful vision of Lord Kailas as Astapad and it's surroundings. If there is any love, peace and truth in the world that is here. Materialistic life is nothing to this holy place. I am graceful to the Lama, who took me to there and he is nothing but Lord Shiva in disguise of Lama. Touching of Lord Kailas is the greatest assets in my human life. Now I have no other desires in life, bacause my realization, sense of thrilling vibrations is my final achievements in this Kailas yatra."
अष्टापद पर चढ़ना साधारण मनुष्य के लिये बहुत ही असम्भव है अष्टापद - कैलाश को बहुत ही पूज्य । और पवित्र माना गया है। इसकी पवित्रता को अक्षुण्ण रखने के लिये इस पर चढ़ने की कोशिश सामान्य आदमियों के लिये वर्जित है । इस विषय में Herbert Tichy का यह अनुभव दे रहे हैं जिसमें उन्होंने कैलाश पर चढ़ने का असफल प्रयास किया था और उनका क्या अनुभव रहा यह बताया हैं । "Herbert Tichy during one of his travels in Tibet could not resist the temptation of climbing Kailas. All attempts by his sherpa Nima to deter him from undertaking such an attempt failed and he started climbing alone. It was a ‘'lovely day' according to him. Herbert Tichy in his book 'Himalaya' writes "I was still a long way from the summit when the clouds came up from the Valleys and enveloped me in icy gray pall. Soon, I was being lashed by gigantic hailstones, and unable to fine a single hositable rock behind which to shelter. I beat an ignominious retreat. Back at our camp Nima gave me a broad grin and postively enjoyed telling me that down at the camp there had not been a spot of rain the whole day indeed the earth was bone dry. Yet the mountain was still swathed in a great black cloud that was like a warning to stop frivolously desecrating the realms of God. That sacred mountain are no joke was something I learned" (Eternal Himalaya)
अध्यात्म योग और तपस्या का महत्व बहुत होता है और इसके द्वारा अष्टापद के दर्शन करके अनेकों पुण्य आत्माओं ने अपने को धन्य किया है जिसमें सहजानन्दजी का नाम उल्लेखनीय है । इस सन्दर्भ में यह वृतान्त महत्वपूर्ण है... " बंगलोर की सविता बेन छोटू भाई ने हम्पी जाकर कई दिन साधना की तब गुरुदेव सहजानन्दजी ने उनसे जो कहा वह सद्गुरु संस्मरण पत्रांक ८८ में लिखा है- मैंने पूज्य गुरुदेव से कहा कि सुगन्ध के साथ किसी के होने का अनुभव किया। तब गुरुदेव ने कहा कि वह तो ऐसे ही हुआ करता है। तुम कोई साक्षात् दिखायी दे और पूछे कि तुम्हें क्या चाहिये तो कहना कि तुम्हें महाविदेह क्षेत्र के सीमन्धर स्वामी के वर्शन चाहियें, इतना मांगना ऐसा गुरुदेव ने कहा था.... वैसे तो मैं शास्त्राभ्यास करती हूँ जिसमें मुझे अष्टापद के विषय में समाधान नहीं हुआ था । गुरुदेव से मैंने प्रश्न पूछा तब गुरुदेव ने उनको जो अष्टापद प्रत्यक्ष दर्शन हुए थे उस अनुभव की बात कि अष्टापद पर तीन चौबीसियों हैं बहत्तर जिनालय हैं। भूत, भावि और वर्तमान रत्न प्रतिमाएँ हैं जिन्हें भरत राजा ने बनवाया है। यहाँ अपने पास जो परम कृपालु देव की पद्मासन प्रतिमा है उससे थोड़ी बड़ी है । "
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Adinath Rishabhdev and Ashtapad
ss 192 a