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Shri Ashtapad Maha Tirth
जिन प्रभु को नमस्कार करने में उद्यमशील सूर्यादि भ्रमणकर रहे हैं। वर्षा उष्ण और शीतकालरूपी वेष धारणकर यह काल - समय दिन और रात्रि द्वारा जिनकी सेवा करने वाला है और जिनकी सेवा-पूजा के लिये ही विधाता ब्रह्मा ने खानें और मलयाचलादि बनाये हैं ।
काश्मीरे कुङ्कुमं, देवि ! यत्पूजाऽर्थ विनिर्मितम् । रोहणे सर्व रत्नानि यदभूषण कृते व्यधात् ॥ २८ ॥
हे देवी ! ब्रह्माजी ने फिर इनकी पूजा के लिए काश्मीर में कुंकुम - केसर बनाई है और रोहणगिरि पर सभी प्रकार के रत्न जिनके आभूषण अलंकार के लिए बनाये हैं।
रत्नाकरोऽपि रत्नानि यत्पूजाऽर्थं च धारयेत् ।
तारकाः कुसुमायन्ते भ्रमन्तो यस्य सर्वतः ॥ २९ ॥
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समुद्र भी जिनकी पूजा के लिये रत्न धारण करता है और जिनके आस-पास भ्रमण करने वाले तारे भी पुष्प की भाँति परिलक्षित होते हैं।
एवं सामर्थ्य मस्यैव, ना परस्य प्रकीर्त्तितम् ।
अनेन सर्व कार्याणि, सिध्यन्तो त्यवधारय ॥ ३० ॥
इस प्रकार प्रभु के सामर्थ्य - बल का जैसा लोक में कीर्त्तन हुआ है, दूसरे किसी का नहीं । अतः इन्हीं प्रभु के द्वारा सारे कार्य सिद्ध होते हैं, ऐसा ही देवी ! तुम जान लो !
परात्पर मिदं रूपं ध्येयाद् ध्येयमिदं परम्
अस्य प्रेरकता दृष्टा चराचर जगत्त्रये ॥ ३१ ॥
श्रेष्ठ पुरुषों से भी जिनका रूप श्रेष्ठ उत्तम है और वह रूप ध्यान करने योग्य श्रेष्ठपुरुषों से भी श्रेष्ठ तथा ध्यान करने योग्य है। इस चराचर तीन जगत् में इन्हीं प्रभु की प्रेरणा दिखाई देती है।
दिग्पालेष्वपि सर्वेषु, ग्रहेषु निखिलेष्वपि ।
ख्यातः सर्वेषु देवेषु, इन्द्रोपेन्द्रेषु सर्वदा ||३२||
सभी दिग्पालों में, सभी ग्रहों में, सभी देवों और इन्द्र उपेन्द्रों में भी ये प्रभु सर्वदा प्रसिद्ध हैं।
इति श्रुत्वा शिवाद् गौरी, पूजयामास सादरम् ।
स्मरन्ती लिंगरूपणे, लोकान्ते वासिनं जिनम् ||३३||
गौरी - पार्वती ने महादेव - शिव से यह वर्णन सुनकर लोकान्त मोक्षस्थित इन जिनेश्वर प्रभु की ज्योति रूप से स्मरण करते हुए आदर पूर्वक पूजा की।
ब्रह्मा विष्णु स्तथा शक्रो लोकपालस्स देवताः । जिनाचंन रता एते, मानुषेषु च का कथा? ||३४||
ब्रह्मा, विष्णु, शुक्र और देवों सह सारे लोकपाल भी इन जिनेश्वर भगवान् की पूजा में तल्लीन हैं तो फिर मनुष्यों की तो बात ही क्या?
जानु द्वयं शिरश्चैव, यस्य घष्टं नमस्यतः ।
जिनस्य पुरतो देवि ! स यादि परमं पदम् ||३५||
हे देवी! जिनेश्वर प्रभु को नमस्कार करते हुए जिसके दोनों जानु गोडे और मस्तक घिस गये हैं वही परम पद - मोक्ष प्राप्त करता है ।
Adinath Rishabhdev and Ashtapad
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