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वास्तुशिल्प शास्त्र के शिव पार्वती उवाच में ऋषभदेव का महात्म्य ऋषभदेव की प्रमाणिकता की पुष्टि
करता है।
सभी धर्मों का प्रेरणा स्रोत कैलाश है। यहाँ की तीर्थयात्रा प्रतिवर्ष हजारों यात्री करते हैं । यह क्षेत्र प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का निर्वाण स्थल है साथ ही यह क्षेत्र पुराणों आदि ग्रन्थों में शिव के नाम से भी जुड़ा है । तिब्बती भाषा में शिव का अर्थ मुक्त होता है । इसी लिये भगवान् ऋषभदेव को भी कहीं-कहीं शिव के नाम से भी अभिहित किया गया है......
कैलाश पर्वते रम्ये वृषभो यं जिनेश्वर चकार स्वारतारं यः सर्वज्ञ सर्वगः शिवः
Shri Ashtapad Maha Tirth
- स्कन्ध पुराण कौमार खण्ड अ० ३७
केवलज्ञान द्वारा सर्वव्यापी, सर्वज्ञाता परम कल्याण रूप शिव वृषभ ऋषभदेव जिनेश्वर मनोहर कैलाशअष्टापद पर पधारे ।
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तिब्बती भाषा में लिंग का अर्थ क्षेत्र होता है- "It may be mention that Linga is a Tibetan word of Land" (S.K. Roy History Indian & Ancient Eygpt. pg. 28 ) तिब्बती लोग इस पर्वत को पवित्र मानकर अति श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं तथा इसे बुद्ध का निर्वाणक्षेत्र कागरिक पौंच कहते हैं । यहाँ बुद्ध का अर्थ अर्हत से है जो बुद्ध अर्थात् ज्ञानी थे । शिवलिंग का अर्थ मुक्त क्षेत्र अर्थात् मोक्ष क्षेत्र होता है । भक्त भी लिंग पूजा करते थे । जो प्राचीन काल में भी प्रचलित था- "In fact Shiva and the worship of Linga and other features of popular Hinduism were well established in India long before the Aryans came" (K.M. Pannekar "A survey of Indian History' Pg-4), बाद में तान्त्रिकों ने इसका अर्थ अर्हत धर्म के विपरीत बनाकर विकृत कर दिया ।
कैलाश का वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। शिव और ब्रह्मा ने यहाँ तपस्या की थी, मरिचि और वशिष्ट आदि ऋषियों ने भी यहाँ तप किया था । चक्रवर्ती सगर के पूर्वज मन्धाता के यहाँ आने का वर्णन मिलता है। गुरुला मन्धाता पर्वत पर उन्होंने तपस्या की थी। ऐसा कहा जाता है कि गुरुला मन्धाता पर्वत की शृंखला को उपर से देखें तो एक बड़े आकार के स्वस्तिक के रूप में दिखाई देता है । "The Bonpo the ancient pre Buddhist Tibetan religion refers to it as a 'Nine Storey' Swastik Mountain" बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी इस क्षेत्र में आये थे ऐसा तिब्बती ग्रन्थों में वर्णन है । राक्षस ताल के जिस द्वीप पर उन्होंने तपस्या की थी उसका स्वरूप कूर्म की तरह था । स्वामी तपोवन के अनुसार राम और लक्ष्मण भी यहाँ आये थेOn the road from Badrinath to Kailas one can see the foot prints of the two horses on which Rama and Laxman were riding when they went to Kailas. जैन और जैनेतर दोनों ग्रन्थों में रावण का अष्टापद जाने का विवरण मिलता है। जैन शास्त्र में वर्णित इस घटना के विवरण का कागड़ा जिले के नर्मदेश्वर मन्दिर की एक दीवार पर बने चित्र से भी पुष्टि होती है। इस विषय में मीरा सेठ ने अपनी किताब "Wall paintings of the Western Himalayas" में लिखा है "In one of the panel Rawana in his annoyance being ignore by Shiva is trying to shake Kailas" यहाँ बालि की जगह शिव को बताया गया है। स्वामी तपोवन ने भी राक्षस ताल में रावण ने तप किया था ऐसा उल्लेख किया है । यह कहा जाता है कि दत्तात्रेय मुनि ने यहाँ तपस्या की थी। महाभारत में भी कैलाश मानसरोवर से सम्बन्धित अनेक उल्लेख मिलते हैं जिनमें व्यासमुनि भीम, अर्जुन और कृष्ण के कई बार मानसरोवर जाने का उल्लेख है । जोशीमठ और बद्रीनाथ के
Adinath Rishabhdev and Ashtapad
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