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वास्तुशिल्प के प्रमुख प्रणेता विश्वकर्मा माने जाते हैं जिनके नाम से प्राप्त अपराजित शिल्पशास्त्र में महादेव और पार्वती सम्वाद रूप में ३५ श्लोक प्राप्त होते हैं जिसमें सुमेरू शिखर पर ऋषभदेव की भव्य प्रतिमा को देखकर पार्वती महादेव से प्रश्न करती है और महादेवी जी द्वारा प्रभु का जो वर्णन किया गया वह इस प्रकार है
सुमेरू शिखरं दृष्टवा, गौरी पृच्छति शंकरम् । कोऽयं पर्वत इत्येष कस्येदं मंदिरं प्रभो ! ॥१॥
सुमेरू शिखर को देखकर गौरी शंकर को पूछती है कि प्रभो ! यह कौन-सा पर्वत है और किसका मन्दिर हैं ?
कोऽयं मध्ये पुन देवः ? पादान्ता का च नायिका ? |
किमिदं चक्र मित्यत्र ?, तदन्ते को मृगो मृगी ? ॥ २ ॥
Shri Ashtapad Maha Tirth
उस मन्दिर के मध्य भाग में ये कौन से देव विराजमान हैं ? और उनके पगों के नीचे देवी कौन है ? इस परिकर में जो चक्र है ये क्या है ? और उनके नीचे ये मृग और मृगी भी कौन हैं ?
के वा सिंह गजाः के बा? के चामी पुरुषा नव? | यक्षो वा यक्षिणी केवं? के वा चामरधारकः १ ॥३ ॥
ये सिंह, हाथी, नौ पुरुष, यक्ष और यक्षिणी तथा चामरधारी ये सब कौन हैं ?
के वा मालाधरा एते? गजारूढाश्च के नराः ? ।
एतावपि महादेव !, कौ वीणा वंश वादकौ? ॥४॥
हे महादेव ! ये माला धारण करने वाले, गजारूढ मनुष्य और वीणा, वंशी को बजाने वाले ये कौन
हैं ?
दुन्दुभेर्वादकः को वा को वाऽयं शंखवादकः ? ।
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छत्र त्रयमिदं किं वा? किं वा भामण्डलं प्रभो । ॥५॥
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हे प्रभो ! ये दुन्दुभि बजाने वाले, शंख बजाने वाले कौन हैं? ये तीन छत्र और भामण्डल क्या हैं ?
श्रृणु देवि महागौरी! यत्त्वया पुष्ट मुत्तमम् ।
कोऽयं पर्वत इत्येष कस्येवं मन्दिरं? प्रभो ! ।।६।।
हे पार्वती देवी ! तुमने जो पूछा कि यह पर्वत कौन सा है ? किसका मन्दिर है, यह प्रश्न उत्तम है।
पर्वतो मेरू रित्येष स्वर्णरत्न विभूषितः ।
सर्वज्ञ मन्दिर चैतद्, रत्न तोरण मण्डितम् ॥७॥
स्वर्ण और रत्नों से युक्त यह मेरू पर्वत है और रत्नमय तोरण से सुशोभित यह सर्वज्ञ भगवान् का मन्दिर है।
अयं मध्ये पुनः साक्षाद, सर्वज्ञो जगदीश्वरः । त्रयस्त्रिंशत कोटि संख्या, यं सेवन्ते सुरा अपि ॥ ८ ॥
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Adinath Rishabhdev and Ashtapad