Book Title: Ashtapad Maha Tirth Part 01
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 203
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth religion consists in the fact that it goes back to a very early period, and to primitive currents of religious and metaphysical speculation, which gave rise also to the oldest Indian Philosophies - Sankhya and Yoga - and to Buddhism." डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल भी इससे सहमत हैं उनके अनुसार- "यह सुविदित है कि जैन धर्म की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। भगवान् महावीर तो अन्तिम तीर्थंकर थे-भगवान् महावीर से पूर्व २३ तीर्थंकर हो चुके थे उन्हीं में भगवान् ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर थे जिनके कारण उन्हें आदिनाथ कहा जाता है। जैन कला में उनका अंकन घोर तपश्चर्या की मुद्रा में मिलता है। ऋषभनाथ के चरित्र का उल्लेख श्रीमद् भागवत् में भी विस्तार से आता है और यह सोचने को बाध्य होना पड़ता है कि उसका क्या कारण रहा होगा? भागवत् में इस बात का भी उल्लेख है कि महायोगी भरत, ऋषभ के शत् पुत्रों में ज्येष्ठ थे और उन्हीं से यह देश भारत वर्ष कहलाया।" -जैन साहित्य का इतिहास प्रस्तावना पृ.८ भारतीय दर्शन के पृष्ठ ८८ में श्री बलदेव उपाध्याय लिखते हैं- “जैन लोग अपने धर्मप्रचारक सिद्धों को तीर्थंकर कहते हैं जिनमें आद्य तीर्थंकर ऋषभदेव थे। इनकी ऐतिहासिकता के विषय में संशय नहीं किया जा सकता।" ___ 1907 में हेनरी विलियम्स द्वारा सम्पादित "Historians History of the World" ग्रन्थावली के चौबीस खण्ड में एक शब्द भी जैन धर्म या आर्हत् संस्कृति के विषय में नहीं मिलता है यहाँ कि भारतीय इतिहास खण्ड में भी जैन धर्म का कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन ऋषभ तथा अन्य तीर्थंकरों का वर्णन वहां भी है। उसीमें इतिहासकार हेरेन ने मिस्र और फिनिशिया के इतिहास के विषय में लिखा है। "The Gods Anat and Reschuf seems to have reached the Phoenecians from North Syria at a very early period. So far indeed, it is only certain that they were worshipped by the Phoenecian colonists on Cyprus. Portraits of these deities are displayed on the monuments of the Egyptians" इस प्रकार के अनेकों संदर्भ तीर्थंकरों से संबन्धित हमें मिले हैं। सीरिया और बेबीलोन की प्राचीन सभ्यता में भी ऋषभ संस्कृति की झलक मिलती है। Thomas Maurice ने अपनी किताब The History of Hindustan, its Art, and its Science forled "The Original Sanskrit name of Babylonia is Bahubalaneeya; The realm of king Bahubali" यह सर्वविदित है कि बाहुबली ऋषभदेव के पुत्र थे। और उनकी मान्यता आज भी चली आ रही है। इसी संदर्भ में वी. जी. नायर लिखते हैं- "There is authentic evidence to prove that it was the Phoenicians who spread the worship of Rishabha in Central Asia, Egypt and Greece. He was worshipped as 'Bull God in the features of a nude Yogi. The ancestors of Egyptians originally belonged to India. The Phoenicians had extensive cultural and trade relation with India in the pre-historic days. In foreign countries, Rishabha was called in different names like Reshef, Apollo, Tesheb, Ball, and the Bull God of the Mediterranean people. The Phoenicians worshipped Rishabha regarded as Appollo by the Greeks. Reshef has been identified as Rishabha, the son of Nabhi and Marudevi, and Nabhi been identified with the Chaldean God Nabu and MaruDevi with Murri or Muru. Rishabhdeva of the Armenians was undoubtedly Rishabha, the First Thirthankara of the Jains. A city in Syria is known as Reshafa. In Soviet Armenia was a town called Teshabani. The Sabylonion city of Isbekzur seems to be a corrupt form of Rishabhapur.......A bronze image of Reshef (Rishabha) of the 12th century B.C. was discovered at Alasia near Enkomi in Cyprus. An ancient Greek image of Appollo resembled -26 163 Adinath Rishabhdev and Ashtapad

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