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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
गया है।
गुण-कर्म - तिक्त, कटु, मधुर रस, मधुर विपाक, शीतवीर्य, लघु रुक्ष गुण, पित्तवातकफशाम।
सुगन्धित, हृद्य, रोचन, दीपन, वर्णप्रसादक, शिरोविरेचक, अंग-मर्दप्रशमनकारक, वामक, मुखशोधक, मस्तकशोधक, गर्भपातकारक। श्वास, कास, अर्श, मूत्रकृच्छ्र, अर्ति, हृदोग, मलविकार, वस्तिशूल, आध्मान, क्षय, विषप्रभाव, शूल, कण्ठशूल, मूत्राश्मरी, व्रण, प्रतिश्याय, अरुचि, गुल्म, विषविराटु, कण्डु, पिडिका, कोठ, शूल तथा कण्डूनाशक। प्रयोज्यांग-बीज, फल, तेल (३) कण्टकण्टक = चौलाई/कटैली चवलाई (Prickly Amaranth)
इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा गया है। (४) कर्कटी = ककड़ी (snake Cucumber)2s
इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा गया है। सुश्रुत संहिता के चिकित्सा स्थान में मूत्र रोगों के निवारणार्थ ककड़ी का प्रयोग किया गया है।
गुण-कर्म - मधुर, तिक्त रस, विपाक, शीत वीर्य, गुरु, रुक्ष गुण, कफपित्तशामक। ग्राही, रुच्च, मुत्रल, विष्टम्भि, अभिष्यन्दि, दीपन, मुखप्रिय, अतिसार में हितकर, पाचक, तृप्तिकारक, अत्यन्त सेवन करने से वातकोपक। मूत्रकृच्छ्र, मूत्रावरोध, अश्मरी, दाह, क्लम, सन्ताप, मूर्छा, रक्तपित्त तथा श्रमनाशक।
प्रयोज्यांग- फल एवं बीज। (५) कोशातकी२८ = तोरई (Ribbed gourd)
योग से सम्बद्ध ग्रन्थ में इस द्रव्य को साधक के लिए पथ्य कहा गया है। समस्त भारत में इसके फलों का प्रयोग शाक बनाने के लिये किया जाता है।
गुण-कर्म - कफपित्तशामक, प्रभाव-उभयभागहर। वृष्य, व्रणरोपक, कुष्ठ, पाण्डु, प्लीहारोग, शोथ, गुल्म, कृमि, प्रमेह, शिरोरोग, व्रण, उदयरोग,अर्श, कृत्रिम विष, श्वास, कास, ज्वर,कामला तथा विष नाशक।
प्रयोज्यांग- पत्र, फल तथा बीज