Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे ॥३॥ 'अंतरं किं चरइ य ४,' अन्तरं कियच्चरति च-कियत्परिमाणमन्तरं कृत्वा द्वावपि सूर्यों परस्परं चारं चरत इति चतुर्थस्याशयः ४ ॥६॥ 'उग्गाहइ केवइयं ५' अवगाहते कियत्-कियत्प्रमाणं द्वीपं समुद्रं वा अवगाह्य सूर्यचारं चरतीति पश्चममाभृतत्राभृतस्याशयः ।।५।। 'केवइयं च विकंपइ ६ कियच्च विकम्पते-एकैकः सूर्य एकैकेन रात्रिन्दिवेन कियप्रमाणं क्षेत्र विकम्प्य-विमुच्य चारं चरतीनि पष्ठः प्रश्नः ॥६॥ 'मंडलाण य संठाणे,' मण्डलानां च संस्थानम् , संस्थानं संस्थितिः अभिधानीयं वा कैश्च कैश्वामिधानीयैः कुत्र कुत्र केन प्रकारेण मण्डलानां संस्थितिरिति सप्तमः प्रश्नः ॥७॥ 'विक्खंभो ८' विष्कम्भो व्यासः तेषामेव मण्डलानां विष्कम्भो वाहल्यम् । मण्डलानां विस्तृतिरित्यर्थः, कियत्यो विस्तृतयो मण्डलाना भिति प्रणतं मां वोधय इत्यष्टमः प्रश्नः ॥८॥ “अट्ठ पाहुडा ८" अष्टो प्राभृतानि, एवं प्रथमे प्राभृते अर्थाधिकारसमन्वितानि अष्टौ प्राभृतप्रामृतानि । प्रथमे प्रश्नस्यान्तर्भूताः अष्टौ प्रश्नोपप्रश्ना इत्यर्थः । अत्र किमिति प्राभृतमिति जिज्ञासा निवृत्यर्थझाइये ३ (अंतरं किं चरइय) कितने परिमाण अन्तर में दोनों सूर्य संचरण करता है यह चतुर्थ प्रश्न का आशय है ४-६ (उग्गाहइ केवइयं) ५ कितने प्रमाण वाले द्वीप एवं समुद्र में अवगाहन करके सूर्य गति करता है ? यह पांचवें प्राभृत प्राभूत का भाव है ५ (केवइयं च विकंपइ) ६ एक एक सूर्य एक एक रात्रि दिवस में कितने प्रमाण वाले क्षेत्र को छोडकर गति करता है ? यह छठे प्रश्न का आशय है ६ (मंडलाण य संठाणे) मंडलों का संस्थान माने संस्थिति-व्यवस्था किस प्रकार की है ? अर्थात किस किस व्यवस्था से कहां कहां किस प्रकार से मंडलों की संस्थिति होती है यह सातवें प्रश्न का आशय है ७ (विक्खंभो) उन मण्डलों का विष्कम्भ अर्थात् बाहल्य याने मंडलों का विस्तार कितना है ? यह प्रणाम कहते हुवे मुझको समझाइए, इस प्रकार आठवें प्रश्नका आशय है ८ (अट्ठ पाहुडा) आठ प्राभृत है तथा प्रथम प्राभृत में अर्थाधिकार समन्वित सहित आठ प्रामृत प्राभृत है । प्रथम प्रश्न के अन्तर्भूत
मा शत योथा प्रामृत प्रामृतने आशय छ. ४ (उग्गाहइ केवइयं) ५ मा प्रभावाणा દ્વીપ અને સમુદ્રમાં અવગાહન કરીને સૂર્ય ગતિ કરે છે? આ રીતે પાંચમા પ્રાભૃતપ્રાભૂતનો
छ. (केव इवं च विकंपइ) मे से सूर्य से 3 राबिहिषसमा टसा प्रमाणात क्षेत्रने छाडीने ति ४२ छ ? २ रीत ७८ प्रामृतप्रामृतनो भाप छ. १. (मंडलाणय संठाणे) भानु संस्थान अर्थात् स्थिति व्यवस्था ४ शते थाय छ ? मेटले ४४ કઈ વ્યવસ્થાથી કયાં કયાં કઈ રીતે મંડળની વ્યવસ્થા થાય છે? આ સાતમાં પ્રાભૃત प्राकृतनो भाव छ. ७. (विक्खंभो) से भगानी विमर्थात् साक्ष्य से है મંડળને વિસ્તાર કેટલું છે ? એ નમન કરતા એવા મને સમજાવે આ આઠમા પ્રાભૃતभामृतना सा छे, (अट्ठ पाहुडा) २ ते २.४ प्रामृत प्रामृते। पडेटा प्रामृतभा माधि.
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧