Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सूयगडो १
50-53) 1
श्लोक ८३-८५ में अहिंसा विषयक चर्चा है। चौरासीवें श्लोक में अनन्तवाद और अपरिणामवाद के आधार पर हिंसा का समर्थन करने वाले दृष्टिकोण का प्रतिपादन मिलता है ।
प्रस्तुत अध्ययन में कुछेक विशेष शब्द प्रयुक्त तमन्ना (२०-२५), संगइयं (३०), पासत्व (३२) ।
प्रस्तुत अध्ययन में प्रतिपादित कुछेक मौलिक विचार
१. परिग्रह और दुःख का सम्बन्ध (२) ।
२. हिंसा और वैर का सम्बन्ध (३) ।
३. परिग्रहमूलक हिंसा के तथ्य का उद्घाटन |
४. परिग्रह और हिंसा के त्याग के लिए सम्यग् दर्शन जरूरी।
५. दुःख का निवर्तन धर्म-अधर्म के विवेक से होता है, तर्क से नहीं ( ४६-४९) ।
कुछ विशेष प्रयोग
१. पव्वया ( प्रव्रजिताः ) १६ ।
२. जिया ( जीवाः) २८ ।
३. अप्पत्तियं अप्रीतिकं ३६ ।
विभिन्न दार्शनिकों के विभिन्न मतों का इस अध्ययन में सुन्दर निरूपण हुआ है
।
हमने उन मतों के पूर्वपक्ष की चर्चा इस अध्ययन में अन्य दार्शनिकों के मतों
करते हुए बौद्ध और वैदिक परम्पराओं की मान्यताओं को भी टिप्पणों में स्पष्ट किया है का संक्षेप में उल्लेख है । उनका विस्तार दूसरे श्रुतस्कंध में प्रतिपादित है। इसका निर्देश हमने यथास्थान कर दिया है।
अध्ययन १ प्रामुख
दार्शनिकों के निरूपण के साथ-साथ इसमें बन्धन-विवेक और बन्धन-मुक्ति के उपायों की भी सुन्दर चर्चा है। जम्बू ने सुधर्मा से पूछा- विमा बंधणं वीरे ? कि या जाति ?भगवान् महावीर ने किसे माना है? उसे वोड़ने का उपाय क्या है? इसके उत्तर में सुधर्मा ने कहा- परिग्रह बंधन है, हिंसा बंधन है। इसका हेतु है-ममत्व बन्धन-मुक्ति का उपाय है- धन और परिवार में अत्राण दर्शन और जीवन का मृत्यु की ओर संधावन की अनुभूति । ( श्लोक २-५ ) इस अध्ययन की चूर्णि में अनेक नए-नए तथ्यों का उल्लेख है। हमने टिप्पणों में उनका यथेष्ट उपयोग किया है । वृत्तिकार शिलांक ने भी अनेक जानकारियां प्रस्तुत की हैं।
छासठवें श्लोक का तीसरा चरण है-मारेण संथुया माया- इसमें मृत्यु की उत्पत्ति की कथा का संकेत मात्र है। यह कथा महाभारत के द्रोणपर्व, अध्याय ५३ में मिलती है। चूर्णिकार ने इस श्लोक के स्थान पर आचार्य नागार्जुन द्वारा सम्मत श्लोक दिया है । वह पूरे कथानक का द्योतक है
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अतिजीवा में, मही विष्णवते प ततो से माया करे लोगस्सऽभिवा ॥
देखें - टिप्पण संख्या - १२८ ।
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