Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ FASASHIONIGGPRSHASYCLOPESABPMAPMRPRISPNABRANASPITAASPIONSPIR50%ARSPIRAEPTEMRAPESTORIES तुरिए चेव अहे गतिविसए अप्पे० चेव मंदे० चेव, जावतियं खेतं सके देविंद देवराया उड्ट उप्पयति एकेणं समएणं तं वजे दोहिं, जं वजे दोहिं तं चमरे तिहि. सव्वत्थोवे सकस्स देविंदस्स देवरनो उडढलोयडए अहेलोयडए संखेजगणे, जावतिय खेत्तं चमरे असुरिंदै असुरराया अहे ओवयति एकेणं समरणं तं सके दोहिं जं सके दोहिं तं पजे तिहिं. सव्वत्थोवे चमरस्स असुरिंदस्स असुररमो अहेलोयकंडए उड्ढलोयकंडए संखेज्जगुणे, एवं खलु गोयमा! सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा चमरे असुरिदे असुरराया नो रांचाइए साहत्यि गेण्डितए, सकस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरनो उड्ढे अहे तिरियं च गतिविसयस्स कयरे२हिंतो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा?, गोयमा! सव्वत्थोवं खेत्तं सके देविंदे देवराया अहे ओवयह एकेणं समएणं तिरियं संखेजे भागे गच्छइ उड्ढ़ संखेजे भागे गच्छइ, चमरस्स णं मंते ! असुरिंदस्स असुररनो उड्ढे अहे तिरियं च गतिविसयस्स कयरेर हितो अप्पे वा बहुए वा तुले वा विसेसाहिए वा?, गोयमा ! सव्वत्थोवं खेतं चमरे असुरिंदे असुरराया उड्ढं उप्पयति एक्केणं समएणं तिरियं संखेजे भागे गच्छद अहे संखेजे भागे गच्छइ, वज जहा सक्कस्स देविंदस्स तहेव नवरं विसेसाहियं कायव्यं, सकस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो ओवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स य कयरे२हितो अप्पे वा बहुए वा तुड़े वा विसेसाहिए वा ?, गोयमा ! सव्वत्थोवे सकस्स देविंदस्स देवरन्नो उड्ढं उप्पयणकाले ओवयणकाले संखेजगुणे, चमरस्सवि जहा सकस्स णवरं सबस्थोवे ओवयण - काले उप्पयणकाले संखेजगणे, वजस्स पुच्छा, गोयमा ! सबथोवे उप्पयणकाले ओवयणकाले विसेसाहिए, एयस्स णं मंते ! वज्जस्स बजाहिवइस्स चमरस्स य असुरिंदस्स असररन्नो ओवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स य कयरेशहिता अप्पे वा ४१, गोयमा! सकस्स य उप्पर सकस्स य ओवयणकाले वज्जस्स य उप्पयणकाले एस णं दोहवि तुड़े संखेजगुणे, चमरस्स उ उप्पयणकाले जस्स य ओवयणकाले एस णं दोहऽवि तुडे बिसेसाहिए ।१४६। तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया वज्जभयविष्पमुक्के सक्केणं देविदेणं देवरन्ना महया अवमाणेणं अपमाणिए समाणे चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि ओहयमणसंकप्पे चिंतासोयसागरसंपविद्वे करयलपल्हत्यमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिट्ठीए झियाति, तते णं तं चमरं असुरिंदं असुररायं सामाणियपरिसोववन्नया देवा ओहयमणसंकप्पं जाब झियायमाणं पासंति त्ता करयल जाव एवं क्यासी-किषण देवाणुप्पिया! ओहयमणसंकप्पा जाब झियायह?, तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया ने सामाणियपरिसोववन्नए देवे एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए समणं भगवं महावीरं नीसाए सके देविंदे देवराया सयमेव अचासादिए, तए णं तेणं परिकुविएणं समाणेणं ममं बहाए बजे निसिट्टे, तं भद्दपणं भवतु देवाणुप्पिया! समणस्स भगवओ महावीरस्स जस्स मम्हिमनुपभावेण अकिटे अव्वहिए अपरिताविए इहमागए इह समोसढे इह संपत्ते इदेव अजं उवसंपजित्ताणं विहरामि, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समण भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो जाच पजुवासामोत्तिकटु चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव सविड्ढीए जाव जेणेव असोगवरपायवे जेणेव ममं अंतिए तेणेच उवागच्छदत्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं जाव नमंसित्ता एवं वदासी-एवं खलु भंते ! मए तुम नीसाए सके देविंदे देवराया सय- 18 मेव अचासादिए जाव तं भई णं भवतु देवाणुप्पियाणं जस्स मम्हि अणुपभावेणं अकिडे जाव विहरामि तं खामेमि णं देवाणुप्पिया ! जाच उत्तरपुरच्छिमं दिसीभार्ग अवकमइ ना जाय पत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसेइ त्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए, एवं खलु गोयमा ! चमरेणं असुरिंदेणं असुररना सा दिव्या देविड्ढी लदा पत्ता जाव अभिसमआगया. ठिती सागरोवम, महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति । १४.७। किं पत्तिए णं भंते ! असुरकुमारा देवा उड्ढे उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ?, गोयमा ! तेसिंण देवाणं अहणोक्वनगाणं वा परिमभवत्थाणं वा इमेयारूचे अज्झथिए जाव समुप्पज्जइ-अहोणं अम्हहि दिव्या देविड्ढी लदा पत्ता जाव अभिसमन्नाग देविड्ढी जाव अभिसमयागया तारिसिया णं सकेणं देविदेणं देवरमा दिव्या देविड्ढी जाव अभिसनागया, जारिसिया णं सकेणं देविदेणं देवरन्ना जाच अभिसमन्नागया तारिसिया णं अम्हेहियि जाव अभिसमचागया तं गच्छामो णं सक्कस्स देविंदस्स देवरो अंतियं पाउच्भवामो, पासामो ताव सकस्स देविंदस्स देवरनो दिव्वं देविइिंढ जाव अभिसमनागयं पासतु ताव अम्हऽवि सक्के देविंदे देवराया दिव्यं देविढि जाव अभिसमण्णागर्य, तं जाणामो ताव सक्करस देविंदस्स देवरलो दिव्वं देविड्ढि जाव अभिसमन्त्रागयं जाणउताव अम्हऽपि सके देविंद देवराया दिव्वं देविहिंद जाव अभिसमण्णागयं, एवं खलु गोयमा! असुरकुमारा देवा उड्ढं उम्पयंति जाच सोहम्मो कप्पो। सेवं भंते २त्ति ।१४८ा चमरो समत्तो ॥२०३ उ०२॥ तेणं कालेणं० रायगिहे नाम नगरे होत्या जाव परिसा पडिगया, तेणं कालेणं० जाव अंतेवासी मंडियपुत्ते णाम अणगारे पगतिभदए जाव पजुवासमाणे एवं वदासी-कति ण भंते ! किरियाओ पं०१, मंडियपुत्ता ! पंच किरियाओ पं० त० काइया अहिंगरणिया पाउसिया पारियावणिया पाणाइवायकिरिया, फाइया णं भंते ! किरिया कतिविहा पं०१. मंडियपुत्ता! दुविहा पं० सं०-अणुवस्यकायकिरिया य दुप्पउत्तकायकिरिया य, अहिगरणिया णं भंते ! किरिया कतिविहा पं० १. मंडियपुत्ता ! दुषिहा पं० २०-संजोयणाहिगरणकिरिया (४७) १८८ श्रीभगवत्यंग - सन मुनि दीपरत्नसागर OMETRSSPICNISTRVISPEAREPO48PICNBIPIASPIRMASP8ASPRAISHISHASPICARSHIOMMEPRARIPASHAMSHESARIPEAK

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248