Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 44
________________ रूवं समणं वा माहणं का हीलिता निंदित्ता खिंसित्ता गरहित्ता अवमनित्ता अन्नयरेणं अमणुत्रेणं अपीतिकारएणं असणपाणखाइमसाइयेणं पढिलाभेत्ता, एवं खलु जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति, कहनं भंते! जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं एकरैति ?, गोयमा !० नो पाणे अइवाइता नो मुख बत्ता तहारूवं समणं वा माहणं वा वंदित्ता नर्मसित्ता जाव पवासित्ता अन्नयरेणं मणुन्नेणं पीइकारएणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं खलु जीवा सुभदीहाउयताए कम्मं एकरेंति । २०३ । गाहावइस्स णं भंते! भंड चिकिणमाणस्स केई भंड अवहरेजा, वस्त्र णं भंते! तं भंडे अणुगवेसमाणस्स कि आरंभिया किरिया कजइ परिग्गहिया० माया० अप० मिच्छा ?, गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जइ परि० • माया० अपच मिच्छादंसणकिरिया सिय कज्जई सिय नो कज्जइ, अह से भंडे अभिसमन्नागए भवति तज से पच्छा सब्बाओ ताओ पयणुईभवंति गाडावतिस्स णं भंते! तं भंड विकिणमाणस्स कविए मंडे सातिजेजा भंडे य से अणुवणीए सिया गाहावतिस्स णं भंते! ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कज्जइ जाब मिच्छादंसणकिरिया कज्जड ?, कइयस्स वा ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कजइ जाव मिच्छादंसणकिरिया कलह ?, गोयमा! गाहावइस्स ताओ भंडाओ आरंभिया किरिया कज्जइ जाब अपचक्खानिया मिच्छादंसणवत्तिया किरिया सिय कजइ सिय नो कज्जइ, कवियस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुईभवंति गाहावतिस्स णं भंते! मंडं विक्किणमाणस्स जाव भंडे से उबणीए सिया कतियस्स णं भंते! ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कज्जति० गाहावइस्स वा ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कज्जति० १, गोयमा ! कइयस्स ताओ भंडाओ हेट्ठिहाओ चत्तारि किरियाओ कजति मिच्छादंसणकिरिया भयणाए०, गाहावतिस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुईभवंति गाहावतिस्स णं भंते! भंडं जाव धणे य से अणुवणीए सिया० एपि जहा भंडे उवणीए तहा नेयच्यं चटत्थी आलावगो, धणे से उचणीए सिया जहा पढ़मो आलावगो, भंडेय से अणुवणीए सिया तहा नेयथ्यो, पढमचउत्थानं एको गमो बितीयतईयाणं एको गमो, अगणिकाए णं भंते! अहुणो (प्र० अणु)जलिते समाणे महाकम्मतराए चैव महाकिरियतराए चैव महासवतराए चैव महावेदणतराए चैव भवति, आहे णं समए २ वोकसिजमाणे २ चरिमकालसमयंसि इंगालभूए मुम्मुरभूते छारियभूए तओ पच्छा अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव भवति ?, हंता गोयमा ! अगणिकाए णं अणुज्जलिए समाणे तं चैव । २०४। पुरिसे णं भंते! धणुं परामुसइ ता उसे परामुसइ ता ठाणं ठाइ ता आयतकण्णाययं उसुं करेति त्ता उड्ढं वेहासं उ उब्विहइ ता ततो णं से उसे उड़ढं बेहास उब्बिहिए समाणे जाई तत्थ पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई अभिहणइ वत्तेति लेस्सेति संघाएइ संघद्वेति परितावे किलामेइ ठाणाओ ठाण संकामेइ जीवि याओ ववशेवेह तए णं भंते से पुरिसे कतिकिरिए ? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे धणुं परासमुइ जाव उब्विदइ तावं च णं से पुरिसे कालियाए जाब पाणातिवायकिरियाए पंचहिं' किरियाहिं पुढे, जेसिपि य णं जीवाणं सरीरेहिं घणू निव्यत्तिए तेऽचिय णं जीवा काइयाए जाब पंचहि किरिगाहिं पुट्ठा, एवं धणुपुढे पंचहि किरियाहिं, जीवा पंचहिं, हारू पंचहिं, उसू पंचर्हि, सरे पत्तणे फले हारू पंचहि । २०५ । अहे णं से उसे अप्पणो गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए अहे बीससाए पश्च्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाव जीवियाओ वक्रोवेइ तावं च णं से पुरिसे कतिकिरिए ?, गोयमा ! जावं च णं से उम्र अप्पणो गुरुपयाए जाव वक्रोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइय़ाए जाव चउहिं किरियाहिं जुडे, जेसिंपि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए तेऽवि जीवा चउहिं किरियाहिं, धणूपुढं चउहिं, जीवा चउहिं, हारू चउहिं, उस पंचहिं, सरे पत्तणे फले व्हारू पंचहिं, जेऽवि य से जीवा अहे पचोवयमाणस्स उवगहे चिठ्ठति तेऽविय णं जीवा कांतियाए जाव पंचर्हि किरियाहिं पुट्ठा। २०६। अण्णउत्थिया णं भंते! एवमातिक्खति जाव परूवेंति से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेष्हेजा चकस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमाइने मणुयलोए मणुस्सेहिं से कहमेयं भंते! एवं १, गोयमा ! जण्णं ते अण्ण उत्थिया जाक मणुस्सेहिं जे ते एवमाहंसु मिच्छा०, जहं पुण गोयमा ! एवमातिक्खामि जाव एवामेव चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमावण्णे निरयलोए नेरइएहिं । २०७। नेरइया णं भंते! किं एगत्तं पभू बिउब्वित्तए ? पृहुत्तं पभू बिउव्यित्तए, जहा जीवाभिगमे आलावगो तहा नेयव्वो जाव दुरद्दियासे । २०८। आहाकम्मं अणवजेत्ति मणं पहारेत्ता भवति, से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा, एएणं गमेणं नेयव्वं कीयगडं ठचियं रइयं कंतारमन्तं दुग्भिक्खभत्तं बद्दलियाभतं गिलाणभत्तं सेजायरपिंडं रायपिंडं, आहाकम्मं अणक्जेति बहुजणमज्झे भासित्ता सयमेव परिभुंजित्ता भवति से णं तस्स ठाणस्स जाव अस्थि तस्म आराहणा, एयंपि तह वेव जाव रायपिंडं, आहाकम्मं अणवजेत्तिः सयं अन्नमनस्स अणुप्पदावेत्ता भवति, से णं तस्स एवं तह चैव जाव रायपिंडं, आहाकम्मं णं अणवज्ञेत्ति बहुजणमज्झे पनवतित्ता भवति से णं तस्स जाव अस्थि आराहणा जाब रायपिंडं । २०९ । आयरियउवज्झाए णं भंते! सक्सियसि गणं जगिलाए संगिण्हमाणे अमिलाए उगिन्हमाणे कतिहि भवग्गहणेहिं सिज्झति जाव अंतं करेति ?, गोयमा ! अत्येगतिए तेयेव भवाहणेणं सिज्झति अत्येगतिए दोषेणं भवग्गणेणं सिज्झति तच पुण भवग्गहणं णातिक्रमति (५०) मुनि दीपरत्नसागर २०० श्रीभगवत्यं सतं

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