Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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BHASHRAICHCHACHICKSPESASPITOMRANIGAASHIRAMBHAMARPARMASPRSAROPOMISEASPICHEPRASHRSBHASRHA
प० पुच्छा, नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति, एवं जाय वेमाणिया, नवरं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परंपरोववन्नगा चत्तारिवि आउयाई प०, सेसं तं चेव, नेरइया णं भंते ! किं अणंतरनिग्गया परंपरनिग्गया अणंतरपरंपरअनिग्गया?, गोयमा ! नेरइया णं अर्णतरनिग्गयावि जाव अणंतरपरंपरअनिग्गयापि, से केणटेणं जाव अणिम्पयावि? गोयमा ! जे ण नेरइया पढमसमयनिग्गया ते णं नेरइया अणंतरनिम्गया जे णं नेरइया अपढमसमयनिग्गया ते ण नेरइया परंपरनिग्गया जे णं नेरइया विग्गहगतिसमावन्नगा ते ण नेरइया अणंतरपरंपरअणिग्गया, से तेणतुणं गोयमा! जाव अणिग्गयावि, एवं जाव वेमाणिया, अणंतरनिग्गया णं भंते! नेरइया कि नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति ?, गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति, एवं निरवसेस जाव वेमाणिया, नेरइया णं भंते! कि अणंतर खेदोववन्नगा परंपरखेदोववन्नगा अणंतरपरंपरखेदाणुववन्नगा?, गोयमा ! नेरइया० एवं एएणं अभिलावेणं ते चेव चत्तारि दंडगा भाणियब्बा। सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहर।५०१॥श०१४ उ०१॥ फतिविहे णं भंते ! उम्मादे पं०१, गोयमा ! दुविहे उम्मादे पं० तं० जक्खावेसे य मोहणिजस्स य कम्मस्स उदएणं, तत्थ णं जे से जक्खाएसे से णं सुहवेयणतराए चेव सुहविमोयणतराए चेव, नस्थ णं जे से मोहणिजस्स कम्मस्स उदएणं से णं दुहवेयणतराए चेव दुहविमोयणतराए चेव, नेरइयाणं भंते ! कतिविहे उम्मादे पं० १, गोयमा ! दुबिहे उम्मादे पं० त० जक्खावेसे य मोहणिजस्स य कम्मस्स उदएणं,
बुधइ नरइयाण दुविह उम्माद पं० ते०-जक्खावेसे य मोहणिज्जस्स जाव उदएणं?, गोयमा ! देवे वा से असुभे पोग्गले पक्खिवेजा. से णं तेंसिं असुभाणं पोग्गलाणं पक्खिवणयाए जक्खाएसं उम्मादं पाउणेजा, मोहणिजस्स वा कम्मस्स उदएणं मोहणिजं उम्मायं पाउणेज्जा, ले तेणट्टेणं जाव उम्माए, असुरकुमाराणं भंते! कतिबिहे उम्मादे पं०?, एवं जहा नेरइयाणं नवरं देवे वा से महिदढीयतराए असुभे पोग्गले पक्खिवेज्जा से णं तेसिं असुभाणं पोग्गलाणं पक्खिवणयाए जक्खाएसं उम्मादं पाउणेजा मोहणिजस्स वा सेसं तं वेव, से तेणटेणं जाव उदएणं, एवं जाय थणियकुमाराणं, पुढवीकाइयाणं जाव मणुस्साणं एएसिं जहा नेरइयाणं, चाणमंतरजोइसवेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं ।५०२॥
प.जाह ण भत. सादाबद दवराया बुट्टिकाय काउकाम भवति से कहामयाण पकरीत, गायमा! ताहेचेवणं से सके देविंद देवराया अम्भितरपरिसए देवे सदावेति, तए णं ते अभितरपरिसया देवा सहापिय समाणा मज्झिमपरिसए देवे सहावेति. तए णं ते मज्झिमपरिसगा समाणा बाहिरपरिसए देवे सद्दावेंति, तए णं ते बाहिरपरिमगा देवा सद्दाविया समाणा बाहिरगा देवा सद्दावेंति, तए ण ते बाहिरगा देवा सहाविया समाणा आभिओगिए देवे सहावेंति तए णं ते जाव सहाबिया समाणा बुट्ठिकाए देवे सहावेति तए णं वे बुट्टिकाइया देवा सद्दाविया समाणा बुडिकायं पकरेंति, एवं खलु गोयमा ! सके देविंद देवराया बुडिकायं पकरेति, अस्थि णं भंते! असुरकुमारावि देवा बुद्धिकायं पकरेंति ?, हंता अत्वि, किं पत्तियन्नं भंते ! असुरकुमारा देवा वुट्टिकायं पकरेंति ?, गोयमा ! जे इमे अरहता भगवंतो एएसिणं जम्मणमहिमासु वा निक्खमणमहिमासु वा णाणुप्पायमद्दिमासु वा परिनिब्वाणमहिमासु वा एवं खलु गोयमा! असुरकुमारा देवा बुटिकायं पकरेंति, एवं नागकुमारावि, एवं जाव थणियकमारा, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया एवं चेव।५०३। जाहे णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया तमुक्कायं काउकामे भवति से कहमियाणिं पकरेति?, गोयमा ! ताहे चेव णं से ईसाणे देविंदे देवराया अम्भितरपरिसए देवे सहावेति, तए णं ते अम्भितरपरिसगा देवा सहाविया समाणा एवं जहेव सकस्स जाव तए णं ते आमिओगिया देवा सहाविया समाणा तमुक्काइए देवे सदाति, तए णं ते तमुक्काइया देवा सहाविया समाणा तमुकायं पकरेंति, एवं खलु गोयमा! ईसाणे देविंद देवराया तमुकायं पकरेति, अस्थि णं भंते ! असुरकुमार वि देवा तमुक्कार्य पकरीता,हता आत्थि, किपात्तयन्न भत. असुरकुमारादेवा तमुकाय पकरीत?.गोयमा! किड्डातिपत्तिय वा पांडणीयविमोदणट्ठयाए वा गुत्तीसारक्खणहउवा अप्पणो वा सरीरप. 38 च्छायणटाए, एवं खलु गोयमा! असुरकुमारावि देवा तमुकायं पकरेंति, एवं जाव वेमाणिया। सेवं भंते!२ त्ति जाब विहरइ । ५०४॥श०१४ उ०२॥ (महकाए सकारे सत्येणं वीइवयंति देवा उ। वीसं चेव य ठाणा नेरइयाणं तु परिणामे ॥१॥ पा०) देवेणं भंते! महाकाए महासरीरे अणगारस्स भावियष्पणो मज्झमझेणं बीइवएज्जा?, गोयमा! अत्यंगइए बीइवएज्जा अत्थेगतिए नो बीइवएजा, से केणतुणं भंते! एवं बुचइ अत्थेगतिए वीइवएज्जा अत्येगतिए नो वीइवएज्जा?, गोयमा! दुविहा देवा पं० तं०-मायीमिच्छादिट्टीउववन्नगा य अमायीसम्मदिट्ठीउववन्नगा य, तत्थ णं जे से मायीमिच्छादिट्ठीउववन्नए देवे से णं अणगारं भावियप्पाणं पासइत्ता नो वंदति नो नमसति नो सकारेति नो सम्माणेति नो कडाणं मंगलं देवयं चेइयं जाव पज्जुवासति, से णं अणगारस्स भावियप्पणो मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा, तत्थ णं जे से अमायीसम्मदिहिउववन्नए देवे से णं अणगारं भाषियप्पाणं पासइ त्ता बंदति नमसति जाव पजुवासति, से णं अणगारस्म भाषियप्पणो मझमझेणं नो वीयीवएजा, से तेण गोयमा ! एवं बुचइ जाव नो बीइवएज्जा, असुरकुमारे णं भंते ! महाकाये महासरीरे०?.एवं चेब, ३०१ श्रीभगवत्यंगं- सन-१४
मुनि दीपरनसागर

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