Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 155
________________ करिस्संति वा, से जहा वा गंगा महानदी जओ पबूढा जहिं वा पज्जुवत्थिया एस णं अद्धपंचजोयणसयाई आयामेणं अद्धजोयणं विक्खंभेणं पंच धणुसयाई उब्वेहेणं एएणं गंगापमाणेण सत्त गंगाओ सा एगा महागंगा सत्त महागंगाओ सा एगा सादीणगंगा सत्त सादीणगंगाओ सा एगा मच्चुगंगा सत्त मन्चुगंगाओ सा एगा टोहियगंगा सत्त लोहियगंगाओ सा एगा आ (प्र० अ )वतीगंगा सत्त आवतीगंगाओ सा एगा परमावती० एवामेव सपुब्बावरेणं एवं गंगासयसद्दस्सं सत्तरसहस्सा छच्चगुणपन्नगंगासया भवतीतिमक्खाया, तासिं दुबिहे उद्धारे पं० तं सुहुमचदिकलेवरे चैव त्रायस्त्रोंदिकलेवरे चैव, तत्थ णं जे से सहमबोंदिकलेवरे से ठप्पे, तत्थ णं जे से वायरत्रोंदिकलेवरे तओ णं वाससए २ गए एगमेगं गंगावालयं अवहाय जावतिएणं कालेणं से कोट्टे खीणे णीरए निलेवे निट्टिए भवति सेत्तं सरे सरप्यमाणे, एएणं सरप्पमाणेणं तिनि सरसयसादस्सीओ से एगे महाकप्पे चउरासीई महाकप्पसयसदस्साई से एगे महामाणसे, अनंताओ संजूहाओ जीवे चयं चइत्ता उवरिले माणसे संजू देवे उबवज्जति से णं तत्थ दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं टिइक्खएणं अनंतरं चयं चहत्ता पढमे सन्निगभे जीवे पचायाति से णं तओहिंतो अनंतरं उब्वट्टित्ता मझिले माणसे संजूहे देवे उबवज्जइ, से णं तत्थ दिव्वाई भोगभोगाई जाव विहरिता ताओ देवलोयाओ आउ जाव चइत्ता दोचे सन्निगभे जीत्रे पचायावि, से तहिंतो अनंतरं उच्चट्टित्ता हेट्टिले माणसे संजू देवे उबवज्जइ से णं तत्थ दिव्वाई जाव चइत्ता तथे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाति से णं तओहिंतो जाव उच्चट्टित्ता उवरिले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उपवज्जति से णं तत्थ दिव्वाई भोग जाव चत्ता चउत्थे सनिगच्भे जीवे पच्चायाति से णं तओहिंतो अनंतरं उच्चद्वित्ता मज्झिमाणुसुत्तरे संजू देवे उववज्जति से णं तत्थ दिव्वाई जाव चइत्ता पंचमे सन्निगभे जीवे पच्चायाति से णं तओहिंतो अनंतरं उच्चट्टित्ता हिट्टिले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जति से णं तत्य दिव्वाई भोग जाब चइत्ता उट्टे सन्निगमे जीवे पच्चायाति से तओहिंतो अनंतरं उब्बद्वित्ता बंभलोगे नाम से कप्पे पं० पाईणपडीणायते उदीणदाहिणविच्छिले जहा ठाणपदे जाव पंच बडेंसगा पं० तं असोगवडेंसए जाव पडिरूवा, से णं तत्थ देवे उववज्जइ, से णं तत्थ दस सागरोवमाइं दिव्वाई भोग जाव चइत्ता सत्तमे सन्निगभे जीवे पच्चायाति से णं तत्थ नवण्डं मासाणं बहुपडिपुत्राणं अट्टमाण जाव वीतिकंताणं सुकुमालगभद्दलए मिउकुंडल कुंचियकेसए मट्टगंडतलकनपीढए देवकुमारसप्प भए दारए पयायति, से णं अहं कासवा !, तेणं अहं आउसो ! कासवा ! कोमारियपव्वज्जाए कोमारएणं बंभचरवासेणं अविद्धकन्नए चैव संखाणं पडिलभामि त्ता इमे सत्त पउपरिहारे परिहरामि तं एणेज्जगस्स महरामस्स माडमंडियस्स रो (प्र० रा ) हस्स भारदाइस्स अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स गोसालस्स मंत्रलिपुत्तस्स, तत्थ ण जे से पढमे पड़परिहारे से णं रायगिहस्स नगरस्स चहिया मंडियकुच्छिंसि चेयंसि उदाइस्स फुंडियायणस्स सरीरं विप्पजहामि त्ता एणेज्जगस्स सरीरगं अणुप्यविसामि सा बाबीसं वासाई पढमं पउट्टपरिहारं परिहरामि तत्थ णं जे से दोचे पउपरिहारे से उद्दंडपुरस्स नगरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेइयंसि एणेजगस्स सरीरगं विष्पजहामि ता महरामस्स सरीरंगं अणुष्पविसामि त्ता एकवीस वासाई दोच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि तत्थ णं जे से तचे पउट्टपरिहारे सेणं चंपाए नगरीए बहिया अंगमंदिरंमि चेइयंसि महरामस्स सरीरंगं विष्पजहामि त्ता महमंडियस्स सरीरंगं अणुप्पविसामि ता बीसं वासाई तच पट्टपरिहारं परिहरामि तत्थ णं जे से चउत्थे पउट्टपरिहारे से णं वाणारसीए नगरीए बहिया काममद्दावणंसि चेइयंसि मंडियस्स सरीरगं चिप्पजहामि त्ता रोहस्स सरीरंग अणुष्पविसामि त्ता एकूणवीसं वासाइ य चउत्थं पट्टपरिहारं परिहरामि तत्थ णं जे से पंचमे पउट्टपरिहारे से णं आलभियाए नगरीए बहिया पत्तकालयंसि चेइयंसि रोहस्स सरीरगं विप्पजद्दामि त्ता भारदाइस्स सरीरगं अणुष्पविसामि त्ता अट्ठारस वासाई पंचमं पउट्टपरिहारं परिहरामि तत्थ णं जे से छुडे पट्टपरिहारे से णं वेसालीए नगरीए बहिया कोंडियायणंसि चेइयंसि भारदाइयस्स सरीरगं विप्पजामि त्ता अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं अणुष्पविसामि त्ता सत्तर वासाई छट्ट पट्टपरिहारं परिहरामि तत्थ णं जे सत्तमे पउट्टपरिहारे से णं इहेब सावत्थीए नगरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावर्णसि अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं विष्पजहामि त्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं अलं थिरं ध्रुवं धारणिजं सीयसहं उपहसहं सुहास विविहदसमसगपरीसहोवसम्गसहं थिरसंघयणंतिकट्टु तं अणुप्यविसामि त्ता से णं सोलस बासाई इमं सत्तमं पउट्टपरिहारं परिहरामि एवामेच आउसो ! कासवा एगेणं तेत्तीसेणं वाससएणं सत्त पट्टपरिहारा परिहरिया भवतीतिमवाया, तं सुट्ट् णं आउसो! कासवा ! ममं एवं वयासी साधु णं आउसो ! कासवा ! ममं एवं वयासी गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासित्ति २ । ५५० । तए णं समणे भगवं महावीरे गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी गोसाला! से जहानामए- तेणए सिया गामेइएहिं परम्भमाणे २ कत्थई गड्ड वा दरिं वा दुग्गं वा णिनं वा पव्वयं वा विसमं वा अणस्सादेमाणे एगेणं महं उन्नालोमेण वा सणलोमेण वा कप्पासपम्हेण वा तणसूण वा अत्ताणं आवरेत्ताणं चिट्टेज्जा से णं अणावरिए आवरियमिति अप्पाणं मन्नइ अपच्छपणे य पच्छण्णमिति अप्पानं मन्नति अणिलुके णिलुकमिति अप्पाणं मन्नति अपलाए पठायमिति अप्पाणं मन्नति एवामेव तुमपि गोसाला ! अणने संते अन्नमिति अप्पाणं उवलभसि तं मा एवं गोसाला!, नारिहसि गोसाला!, सच्चैव ते सा छाया. नो अन्ना । ५५१। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वृत्ते समाणे आसुरुतेः समणं भगवं महावीरं उच्चावयाहि आउसणाहि आउसति त्ता उच्चावयाहिं उसणाहिं उद्धंसेति त्ता उच्चावयाहिं नित्र्भंछणाहिं नित्र्भंछेति त्ता उच्चावयाहि निच्छोडणाहि निच्छोडेति त्ता एवं क्यासी नट्टे सि कदाइ विणट्टे सि कदाइ महेऽसि कयाइ नहुविणट्टभट्टे सि कदायि अज्ज! न भवसि नाहि ते ममाहिंतो सुहमस्थि । ५५२ । द्वेषं कालेः समणस्स भगवओ म० अंतेवासी पाई (प्र० पडि) णजाणवए सव्वाणुभूती णामं अणगारे पगइभहए जाब विणीए धम्मायरियाणुरागेणं एयमहं असद्दहमाणे उडाए उद्वेति त्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवा० त्ता गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी जेऽवि ताव गोसाला! तद्दारुवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतियं एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं निसामेति सेऽवि ताव वंदति नम॑सति जाव कडाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासइ, किमंग पुण तुमं गोसाला! भगवया चैव पब्वाविए भगवया चैव मुंडाविए भगवया चैव सेहाविए भगवया चैव सिक्खाविए भगवया चैव बहुस्सुतीकए भगवओ चेव मिच्छं विप्पडिबन्ने, तं मा एवं गोसाला ! ३११ श्रीभगवत्यं रात-१५ मुनि दीपरत्नसागर

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