Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 230
________________ DSMSYCHOPICNMSPOEMBPSPSRPHASAROPYAKSPRSESPONSPIRSSPICHROPRIEVEM8P84816NSHIARPIRAINR ततियविहूणा भंगा, कण्हलेस्से जाव पम्हलेस्से पढमचितियभंगा, सुक्कलेस्से ततियविहणा भंगा, अलेस्से चरिमो भंगो, कण्हपक्खिए पढमबितिया भंगा, सुकपक्खिए ततियविहणा, एवं सम्मदिहिस्सवि, मिच्छादिहिस्स सम्मामिच्छादिहिस्स य पढमबितिया, णाणिस्स ततियविहणा, आभिणिबोहियनाणी जाव मणपजवणाणी पढमबितिया, केवलनाणी ततियवि. हूणा, एवं नोसनोवउत्ते अवेदए अकसाई सागारोवउत्ते अणागारोवउत्ते एएसु ततियविहूणा, अजोगिम्मि चरिमो, सेसेसु पढमचितिया, नेरदए णं भंते ! वेयणिज कम्मं बंधी बंधक एवं नेरतिया जाब वेमाणियत्ति जस्स जं अत्थि सव्वत्यवि पढमवितिया, नवरं मणुस्से जहा जीवो, जीवेणं भंते! मोहणिज कम्मं किं बंधी बंधइ०?, जहेव पावं कम्मं तहेव मोहणिजंपि निरवसेस जाव येमाणिए ।८१४॥ जीवे णं भंते ! आउयं कम्मं किं बंधी बंधइ.? पुच्छा, गोयमा ! अत्गतिए बंधी चउभंगो, सलेस्से जाव सुफलेस्से चत्तारि भंगा, अन्लेस्से चरिमो भंगो, कण्हपक्खिएणं० पुच्छा, गोयमा! अत्यंगतिए बंधी० पढमततिया भंगा, सुक्कपक्खिए सम्मदिट्टी मिच्छादिट्टी चत्तारि भंगा, सम्मामिच्छादिट्ठी० पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ, नाणी जाव ओहिनाणी चत्तारि भंगा, मणपज्जवनाणी० पुच्छा, गोयमा! अत्थेगविए बंधी बंधइ बंधिस्सइ अत्येगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ अत्थेगतिए बंधी न बंधह न बंधिस्सइ, केवलनाणे चरमो भंगो, एवं एएणं कमेणं नोसन्नोवउत्ते त्रितियविहणा जहेच मणपज्जवनाणे, अवेदए अकसाई य ततियचउत्था जहेच सम्मामिच्छते, अजोगिम्मि चरिमो, सेसेसु पदेसु चत्तारि भंगा जाव अणागारोवउत्ते, नेरइए णं भंते ! आउयं कम्मं किं बंधी० पुच्छा, गोयमा ! अत्यगतिए चत्तारि भंगा, एवं सव्वत्थवि नेरइयाणं चत्तारि भंगा, नवरं कण्हलेस्से कण्हपक्खिए य पढमततिया भंगा, समामिच्छत्ते तवियचउत्था, असुरकुमारे एवं चेब, नवरं कण्हलेस्सेऽवि चत्तारि भंगा भाणियख्या संस जहा नरहयाण, एवं जाब थणियकुमाराणं, पुढविकाइयाण सव्वस्थाच चत्तारि भगा, नवर कण्हपाक्खए पढमतातया भग | बंधिस्सइ, सेसेसु सव्वस्थ चत्तारि भंगा, एवं आउकाइयवणस्सइकाइयाणवि निरवसेसं, तेउकाइयवाउकाइयाणं सव्वत्थवि पढमततिया भंगा, बेइंदियतेइंदियचडरिदियाणंपि सव्वत्थवि पढमततिया भंगा, नवरं सम्पत्ते नाणे आभिणियोहियनाणे सयनाणे ततिओ भंगो. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हपक्खिाए पढमततिया भंगा, सम्मामिच्छत्ते ततियचउत्था भंगा, सम्मत्ते नाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ओहिनाणे एएसु पंचसुवि पदेसु चितियविहूणा, सेसेसु चत्तारि भंगा, मणुस्साणं जहा जीवाणं, नवरं सम्मत्ते ओहिए नाणे आभिणियोहियनाणे सुयनाणे ओहिनाणे एएसु बितियविहणा सेसं तं चेव, बाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमास, नाम गोयं अंतराय च एयाणि जहा नाणावरणिज्ज। सेवं भंते रत्ति जाब विहरति । ८१५। २०२६ उ०१॥ अणंतरोक्वन्नए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी?, पुच्छा तहेव, गोयमा! अत्यंगतिए बंधी पढमबितिया भंगा, सलेसे णं भंते ! अणंतरोववन्नए नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा, गोयमा! पढमबितिया भंगा, एवं खलु सवत्थ पढमबितिया भंगा, नवरं सम्मामिच्छत्तं मणजोगो वइजोगो य न पुच्छिजह, एवं जाव थणियकुमाराणं, बेइंदियतेइंदियचउरिंदियाणं वयजोगो न भन्नइ, पंचिंदियतिरिक्वजोणियाणपि सम्मामिच्छत्तं ओहिनाणं विभंगनाणं मणजोगो वयजोगो एयाणि पंच पदाणि ण भन्नति, मणुस्साणं अलेस्ससम्मामिच्छत्तमणपज्जवणाणकेवलनाणविभंगनाणनोसन्नोवउत्तअवेदगअकसाइमणजोगवयजोगअजोगी एयाणि एक्कारस पदाणि ण भन्नति, वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरइयाणं तहेव ते तिन्नि न भन्नति सम्बेसि, जाणि सेसाणि ठाणाणि सव्वत्थ पढमवितिया भंगा, एगिदियाणं सम्बत्य पढमचितिया भंगा, जहा पावे एवं नाणावरणिज्जेणवि दंडओ, एवं आउयवजेसु जाव अंतराइए दंडओ, अणंतरोववन्नए णं भंते ! नेरइए आउयं कम्मं किं बंधी? पुच्छा, गोयमा! बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, सलेस्मे णं भंते ! अणंतरोववन्नए नेरइए आउयं कम्मं किंबंधी०१, एवं चेव ततिओ भंगो, एवं जाव अणागारोवउत्ते, सव्वत्थवि ततिओ भंगो, एवं मणुस्सवजं जाव वेमाणियाणं, मणस्माणं सब्वत्थ ततियचउत्था भंगा, नवरं कण्हपक्खिएसु ततिओ भंगो, सव्वेसिं नाणत्ताई ताई चेव । सेवं भंते २त्तिा ८१६॥श०२६ उ०२॥ परंपरोववन्नए र्ण भंते ! नेरइए पावं कम्म किंबंधी० पुच्छा, गोयमा! अत्थेगतिए पढमवितिया, एवं जहेच पढमो उहेसओ तहेव परंपरोववन्नएहिवि उद्देसओ भाणियव्वो नेरइयाइओ तहेब नवदंडगसहिओ, अट्ठण्हवि कम्मप्पगडीणं जा जस्स कम्मरस वत्तब्वया सा तस्स अहीणमतिरित्ता नेयब्बा जाव बेमाणिया अणागारोवउत्ता। सेवं भंते.२त्ति ।८१७॥ श०२६ उ०३॥ अणंतरोगाढए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी०? पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगतिए एवं जहेब अणंतरोववन्नएहिं नवदंडगसंगहिओ उद्देसो भणिओ तहेब अणंतरोगाढएहिवि अहीणमतिरित्तो भाणियव्यो, नेरइयादीए जाव वेमाणिए। सेवं भंते ! २॥ श०२६ उ०४॥ परंपरोगाढए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी०? जहेव परंपरोवपन्नएहि उद्देसो सो चव निवसेसो भाणियब्बा। सर्व भत!२ ॥श०२६ उ० ५॥ अर्णतराहारए णं भंते ! नेरतिए पावं कम्मं किं बंधी०१ पुच्छा, एवं जहेव अणंतरोववन्नएहिं उद्देसो तहेब निरवसेसं। सेवं भंते !२॥ श०२६ उ०६॥ परंपराहाराण ३८६ श्रीभगवत्यंगं - - मुनि दीपरत्नसागर STRACTIONAOPEGARHPEAASPIRHARASRANASPASSPOSESMSROPICAS/8/PGRAPRANSPO4SPONSPERMANESH

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