Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
अहेसत्तमाए, एवं गेवेजविमाणाणं अणुत्तरविमाणाण य अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए, एवं अणुत्तरविमाणाणं ईसीपब्भाराए य० पुणरवि जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्यो ।६७२। आउकाइए णं भंते ! इमीसे स्यणप्पभाए सकरप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए त्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्नाए उववजित्तए सेसं जहा पुढवीकाइयस्स जाव से तेणटेणं एवं पढमदोचाणं अंतरा समोहए जाव ईसीपब्भाराए उववाएयब्वो एवं एएणं कमेणं जाव तमाए अहेसत्तमाए य पुढबीए अंतग समोहए ता जाव इसीफ्भाराए उववाएयव्यो आउक्काइयत्ताए, आउयाए णं भंते! सोहम्मीसाणाणं सणकुमारमाहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए त्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिरवलएसु आउकाइयत्नाए उववजित्तए सेसं तं चेव, एवं एएहिं चेव अंतरा समोहओ जाब अहेसत्तमाए पुढवीए घणोदधिरवलासु आउक्काइयत्ताए उववाएयव्यो एवं जाव अणुनरविमाणाणं इसिपच्भाराए पुढवीए अंतरा समोहए जाव अहेसनमाए घणोदधिरवलएसु उववाएयव्यो ।६७३। वाउकाइए णं भंते ! इनीसे रयणप्पभाए पृढवीए सकरप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए ना जे भविए सोहम्मे कप्पे बाउकाइयत्ताए उववजिनए एवं जहा सत्तरसमसए बाउक्काइयउहेसए तहा इहवि नवरं अंतरेसु समोहणा नेयव्वा सेसं तं चेव जाव अणुत्तरविमाणाणं इसीपदभाराए य पुढवीए अंतरा समोहए ना जे भविए घणवायतणुवाए घणवायतणुवायवलए बाउकाइयत्ताए उववजित्तए सेसं तं चेव जाव से तेणटेणं जाव उबवजेजा। सेवं भंते २त्ति 1६७४॥ श०२० उ०६ (पा०६.७.८)। कइबिहे णं भंते ! बंधे पं०, गोयमा ! तिविहे पं० त०- जीवपयोगबंधे अणंतरबंधे परंपरबंधे, नेरइयाणं भंते ! कइबिहे बंधे पं०१, एवं चेव, एवं जाव वेमाणियाणं, नाणावरणिज्जस्सणं भंते ! कम्मस्स कइविहे बंधे पं.?.गोयमा! तिविहे बंधे पं०२०-जीवपयोगबंधे अणंतरबंधे परंपरबंधे, ने कइविहे बंधे पं०?.एवं चेव, जाव वेमाणियाणं, एवं जाव अंतराइयस्स, णाणावरणिजोदयस्स णं भंते! कम्मस्स कइविहे बंधे पं०१. गोयमा ! तिविहे बंधे पं०.एवं चेव. एवं नेरइयाणवि, एवं जाव वेमाणियाणं, जाव अंतराइउदयस्स, इत्थीवेदस्स णं भंते ! कइविहे बंधे पं०?, गोयमा ! तिविहे बंधे पं० एवं चेव, असुरकुमारार्ण भंते! इत्थीवेदस्स कतिविहे बंधे पं०१, गोयमा! तिविहे बंधे पं० एवं चेव, एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं जस्स इथिवेदो अत्थि, एवं पुरिसवेदस्सवि, एवं नपुंसगळ जाव वेमाणियाणं, नवरं जम्स जो अस्थि वेदो, दसणमोहणिज्जस्स ण मंते ! कम्मस्स कइविहे बंधे. एवं चेव निरंतरं जाव वेमा०. एवं चरित्नमोहणिजस्सवि जाव वेमाणियाणं, एवं एएणं कमेणं ओरालियसरीरस्स जाव कम्मगसरीरस्स आहारसन्नाए जाव परिम्गहकण्हलेसाए जाव सुक्कलेसाए सम्मदिट्टीए मिच्छादिट्ठीए सम्मामिच्छादिट्टीए आभिणिबोहियणाणस्स जाव केवलनाणस्स मइअन्नाणस्स सुयअन्नाणम्स विभंगनाणस्स एवं आभिणिचोहियणाणविसयस भंते! कइविहे बंधे पं०१. जाव केवलनाणविसयम्सवि, मइअन्नाणविसयस्स सुयअन्नाणपियसस्स विभंगणाणविसयस्स, एएसि मवेसि पदार्ण तिविहे बंधे पं०, सब्वेऽवेते चउब्बीसं दंडगा भा० नवरं जाणियच्वं जस्स जं अस्थि जाव वेमाणियाणं भंते ! विभंगणाणविसयस्स कइविहे बंधे पं०१, गोयमा ! तिविहे बंधे पं० तं०-जीवप्पयोगधंधे अणंतरबंधे परंपरबंधे। सेवं भंते!२ जाव विहरति । ६७५॥श०२० उ०७॥ कई णं भंते ! कम्मभूमीओ पं०१, गोयमा ! पन्नरस कम्मभूमीओ पं०तं-पंच भरहाई पंच एरवयाई पंच महाविदेहाई, कति णं भंते! अकम्मभूमीओ पं०१, गोयमा! तीसं अकम्मभूमीओ पं०२०-पंच हेमवयाई पंच हेरनवयाई पंच हरिवासाई पंच रम्मगवासाई पंच देवकरूओ पंच उत्तरकरूओ, एयामु ण भंते ! तीसासु अकम्मभूमीसु अस्थि उस्सप्पिणीति वा ओसप्पिणीति वा?णो निणद्वे समझे,एएसणं भंते! पंचसु भरहेसु पंचस एरवाए अस्थि उस्मप्पिणीति वा ओसप्पिणीति वा ?,हंता अस्थि, एएसुणं भंते ! पंचसु महाविदहेसु० णेवत्थि उस्सप्पिणी नेवस्थि ओसप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पं० समणाउसो!।६७६। एएसुणं भंते ! पंचसु महाविदेहेसु अरिहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धस्मं पन्नवयंनि?, णो तिणट्टे समडे, एएसु णं पंचसु भरहेसु पंचसु एवएमु पुरच्छिमपञ्चच्छिमगा दुवे अरिहंता भगवंतो पंचमहब्बइयं सपडिकमणं धम्म पन्नवयंति अबसेसा णं अरिहंता भगवंतो चाउजामं धम्म पन्नवयंति, एएसुणं पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्म पनवयंति, जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए कति तित्थगरा पं०१, गोयमा ! चउवीसं तित्थगरा पं० तं-उसभअजियसंभवअभिनंदणसुमतिसुप्पभसुपासससिपुष्पदंतसीयलसेजंसवासुपुजविमलअणंतइधम्मसंतिकुंथुअरमतिमुणिसुब्बयनमिनेमिपासवद्धमाणा । ६७७। एएसिं णं भंते! चउवीसाए तित्थगराणं कति जिणंतरा पं०१, गोयमा ! तेवीसं जिणंतरा पं०, एएसु णं भंते ! तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कहिं कालियसुयस्स चोच्छेदे पं०?, गोयमा ! एएसु णं तेवीसाए जिणंतरेसु पुरिमपच्छिमएस असु२ जिणंतरेसु एत्य णं कालियसुयस्स अवोच्छेदे पं०, मज्झिमएसु सत्तसु जिणंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स बोच्छेदे पं०. सव्वत्थवि णं वोच्छिन्ने दिद्विवाए। ६७८। जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवाणुपियाणं केवतियं कालं पुव्वगए अणुसजिस्सति ?, गोयमा ! जंचुहीवे णं दीये भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुब्बगए ३४३ श्रीभगवत्यंग-सात-२०
मुनि दीपरत्नसागर

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248