Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
ASTRAMMA8989422058095408586880200098432439845348398442806942348933699948822634
कच्छभाणं जाव सुसुमाराणं, तेसु अणेगसयसह जाव किच्चा जाई इमाई चरिदियविहाणाई भवंति, तं०-अंधियाणं पोत्तियाणं जहा पनवणापदे जाव गोमयकीडाणं, तेसु अणेगसयसह जाव किच्चा जाई इमाई तेइंदियविहाणाई भवंति, तं०- उबचियाणं जाव हत्थिसोंडाणं, तेसु अणेग जाब किच्चा जाइं इमाई बेइंदियविहाणाई भवंति तं०-पुलाकिमियाणं जाच समुहलिक्खाणं, तेसु अणेगसय जाव किचा जाई इमाई वणस्सइविहाणाइं भवंति, सं०-रुक्खाणं गुच्छाणं जाव कुहणाणं, तेसु अणेगसय जाव पवाजाइस्सइ, उस्सन्नं च णं कडुयरुक्रवसु कडुयवाड़ीसु, सव्वत्थविणं सत्थवज्झे जाव किचा जाई इमाई वाउकाइयविहाणाई भवंति, सं०- पाईणवायाणं जाव सुदवायाणं, तेसु अणेगसयसहस्स जाव किच्चा जाई इमाई तेउक्काइ. यविहाणाई भवंति, तं०-इंगालाणं जाव सरकंतमणिनिस्सियाणं, तेसु अणेगसयसह जाव किया जाई इमाई आउकाइयविहाणाई भवंति, तं०- उस्साणं जाव खातोदगाणं, तेसु अणेगसयसह जाव पञ्चायातिस्सइ, उस्सण्णं च णं खारोदएसु खातोदएसु, सव्वत्थविणं सस्थवज्झे जाव किच्चा जाई इमाई पुढविकाइयविहाणाई भवंति, सं०-पुढवीणं सकराणं जाब सूरकंताणं, तेसु अणेगसय जाव पञ्चायाहिति, उस्सन्नं च णं खरबायरपुढविकाइएसु, सब्वत्थविणं सत्थवज्झे जाव किच्चा रायगिहे नगरे बाहिं खरियत्ताए उववजिहिइ, तत्यविणं सत्ववज्झे जाव किच्चा दुचंपि रायगिहे नगरे अंतो खरियत्ताए उववजिहिति, तत्थविणं सस्थवज्झे जाव किच्चा ।५६०। इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले बेमेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पचायाहिति, तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कचालभावं जोवणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुकेणं पडिरूवएणं विणएणं पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियनाए इलइस्सति, साणं तस्स भारिया भविस्मति इट्ठा कंता जाव अणुमया भंडकरंडगसमाणा तेलकेला इव सुसंगोविया चेलपेडा इव सुसंपरिम्गहिया रयणकरंडओविव सुसारक्खिया सुसंगोविया मा णं सीयं मा णं उहं जाव परिसहोवसग्गा फुसंतु, तए णं सा दारिया अन्नदा कदायि गुग्विणी ससुरकुलाआ कुलघरं निजमाणी अंतरा दवांग्गजालाभिहया काला कालं किच्चा दाहिणिहडेसु अम्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववजिहिति, से णं ततोहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति त्ता केवलं बोहिं बुज्झिहिति त्ता मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइहिति, तत्थऽविय णं विराहियसामन्ने कालमासे कालं किच्चा दाहिणिले असुरकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववजिहिति, से णं तओहिंतो जाव उव्वद्वित्ता माणसं दिग्गहं तं चेव जाव तत्थवि णं विराहियसामन्ने कालमासे जाव किच्चा दाहिणिल्लेसु नागकुमारे देवेमु देवत्ताए उववजिहिति, से णं तओहितो अणंतर०, एवं एएणं अभिलावणं दाहिणिल्लेसु सुवन्नकुमारेसु, एवं विजुकुमारेसु, एवं अग्गिकुमारवजं जाव दाहिणिाडेसु थणियकुमारेसु, से णं तओ जाव उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति जाव विराहियसामन्ने जोइसिएम देवेसु उववजिहिति, से णं तओ अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लमिहिति जाब विराहियसामन्ने कालमासे कालं किया सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति, सेणं तओहिंतो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति केवलं बोहिं बुज्झिहिति, तत्थवि णं अविराहियसामन्ने कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति, सेणं तओ चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, तत्थवि णं अविराहियसामन्ने कालमासे कालं किच्चा सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति, से णं तओहिंतो एवं जहा सणंकुमारे तहा बंभलोए महासुके आणए आरणे, से णं तओ जाव अविराहियसामन्ने कालमासे कालं किच्चा सबट्ठसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववन्जिहिति, से णं तओहिंतो अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाई इमाई कुलाई भवंति तं०-अड्ढाई जाव अपरिभूयाई, तहप्पगारेसु कुलेसु पुत्तत्ताए पञ्चायाहिति, एवं जहा उबवाइए दढप्पइन्नवत्तब्वया सच्चेव वत्तब्बया निरवसेसा भाणियव्वा जाव केवलवरनाणदेसणे समप्पजिहिति. तए णं से दढप्पडने केवली अप्पणो तीअद्धं आभोएहिइत्ता समणे निग्गंधे सदावहितित्ता एवं पदिहिह-एवं खलु अहं अज्जो! इओ चिरातीयाए अद्धाए गोसाले नाम मंखलिपुत्ते होत्था समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए तम्मूलगं च णं अहं अज्जो ! अणादीय अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकतार अणुपरियट्टिए, तं मा णे अजो! तुझं केयि भवतु आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए आयरियउवज्झायाणं अयसकारए अबन्नकारए अकित्तिकारए, मा णं सेऽवि एवं चेव अणादीयं अणवदग्गं जाव संसारकतारं अणुपरियहिहिति जहा णं अहं, तए णं ते समणा निग्गंधा दढप्पइन्नस्स केवलिस्स अंतियं एयमई सोचा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउब्विग्गा दढप्पइन्नं केवलिं बंदिहिंति ता तस्स ठाणस्स आलोएहिंति निदिहिंति जाव पडिवजिहिति, तए णं से दृढप्पइन्ने केवली बहूई वासाई केवलिपरियागं पाउणिहिति त्ता अप्पणो आउसेसं जाणेत्ता भत्तं पञ्चक्खाहिति एवं जहा उववाइए जाच सव्वदुक्खाणमंतं काहिति। सेवं भंते २त्ति जाब विहरइ । ५६१ तेयनिसग्गो समत्तो॥ इति पंचदर्श शतकं॥ फ म 'अहिगरणि १जरा २ कम्मे ३ जावतियं ४ गंगदत्त ५ सुमिणे ६ य। उवओग ७ लोग ८ बलि ९ ओही १० दीच ११ उदही १२ दिसा १३ थणिया १४ ॥ ७६॥ तेणं कालेणं० रायगिहे जाव पजुवासमाणे एवं बयासी-अस्थि णं भंते! अधिकरणिसि बाउयाए बक्कमति ?, हंता अस्थि, से भंते ! किं पुढे उद्दाइ अपुढे उद्दाइ?, गोयमा ! पढ़े उहाइ ३१८ श्रीभगवत्यंग - ६
मुनि दीपरत्नसागर

Page Navigation
1 ... 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248