Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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जोणिया दुबिहा पं० तं० इढिप्पत्ता य अणिढिपत्ता य, तत्थ णं जे से इढिप्पत्ते पंचिदियतिरिक्खजोणिए से णं अत्येगइए अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीयीवएजा अत्येगइए नो वीयीवएजा, जेणं बीयीवएजा से णं तत्थ झियाएजा १, नो तिणडे समट्टे, नो खलु तत्थ सत्यं कमइ, तत्थ णं जे से अणिटिप्पत्ते पंचिदियतिरिखजोगिए से णं अत्थेगतिए अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं वीयीवएज्जा अत्थेगतिए नो बीइवएजा, जेणं बीइवएजा से णं तत्थ झियाएजा १, हंता झियाएजा से तेणट्टेणं जाव नो बीयीवएज्जा, एवं मणुस्सेऽवि, वाणमंतरजोइसियवेमाणिए जहा असुरकुमारे । ५१४ । नेरतिया दस ठाणाई पचणुभवमाणा विहरंति तं० अणिट्टा सद्दा अणिट्टा रूवा अणिट्ठा गंधा अणिट्ठा रसा अणिट्ठा फासा अणिट्ठा गती अणिट्टा ठिती अणिट्टे लावन्ने अणिट्टा जसोकित्ती अणिट्टे उट्ठाणकम्मबलवी रियपुरिसकारपरकमे, असुरकुमारा दस ठाणाई पचणुभवमाणा विहरंति तं० इट्टा सदा इहा रूवा जाव इट्टे उट्ठाणकम्मबलबीरियपुरिसकारपरकमे, एवं जाव थणियकुमारा, पुढविकाइया उ द्वाणाई पचणुभवमाणा वि० सं० इट्टाणिट्टा फासा इट्टाणिट्टा गती एवं जाव परकमे, एवं जाव वणस्सइकाइया, बेइंदिया सत्त द्वाणाई पचणुभवमाणा विहति तं इट्टाणिट्ठा रसा सेसं जहा एगिंदियाणं, तेंदिया णं अट्ठ द्वाणाई पचणुभवमाणा वि० सं० इट्टाणिट्ठा गंधा सेसं जहा दियाणं, चउरंदिया नव द्वाणाई पचणुभवमाणा विहरंति तं० इट्टाणिट्ठा रुवा सेसं जहा तेंदियाणं, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दस ठाणाई पञ्चणुभवमाणा विहरंति तं० इट्ठाणिट्टा सदा जाव परकमे, एवं मणुस्सावि, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा । ५१५। देवे णं भंते! महिडीए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू तिरियपव्वयं वा तिरियभित्तिं वा उत्तए वा पहुंचेत्तए वा १, गोयमा ! णो तिणट्टे समझे, देवे णं भंते! महिड्डिए जाव महेसक्से बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू तिरिय जाव पहुंचेत्तए वा?, हंता भू। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति । ५१६ ॥ श० १४४०५ ॥ रायगिहे जाव एवं वयासी नेरइया णं भंते! किमाहारा किंपरिणामा किंजोणीया किंठितीया पं०१, गोयमा ! नेरइया णं पोग्गलाहारा पोम्गलपरिणामा पोम्गलजोणिया पोम्गलद्वितीया कम्मोवगा कम्मनियाणा कम्मद्वितीया कम्मुणामेव विप्परियासमेंति, एवं जाव वेमाणिया । ५१७। नेरइया णं भंते किं वीयीदव्वाइं आहारैति अवीचिदव्वाइं आहारैति१, गोयमा नेरतिया बीचिदव्वाइंपि आहारैति अवीचिदव्वाइंपि आहारैति से केणट्टेणं भंते! एवं बुच्चइ-नेरतिया वीचि तं चैव जाव आहारेति ?, गोयमा जे गं नेरइया एगपएसूणाईपि दव्बाई आहारैति ते णं नेरतिया वीचिदव्वाई आहारैति, जेणं नेरतिया पडिपुनाइं दव्बाई आहारैति ते णं नेरइया अवीचिदव्वाइं आहारैति से तेणट्टेणं गोयमा! एवं बुच्चइ जाब आहारैति एवं जाव बेमाणिया । ५१८। जाहे णं भंते! सके देविंदे देवराया दिव्वाई भोगभोगाई भुंजिउकामे भवति से फहमियाणि पकरेति ?, गोयमा ! ताहे चेव णं से सके देविंदे देवराया एवं मदं नेमिपडिरूवगं विउब्वति एवं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिन्नि जोयणसयसहस्साइं जाव अबंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं, तस्स णं नेमिपडिरूवगस्स उवरिं बहुसमरमणिजे भूमिभागे पं० जाव मणीणं फासे, तस्स णं नेमिपढिरूवगस्स बहुमज्झदेसभागे तत्थ णं महं एवं पासा वडेंसगं विब्वति पंच जोयणसयाई उउचत्तेणं अड्ढाइजाइं जोयणसयाई विक्संभेणं अम्भुग्गयमूसिय वन्नओ जाय पडिरूवं, तस्स पासायवडिंसगस्स उडोए पउमलयभत्तिचित्ते जाव पडिरूवे, तस्स णं पासायवडेंसगस्स अंतो बहुसमरमणिजे भूमिभागे जाव मणीण फासो, मणिपेढिया अट्टजोयणिया जहा वैमाणियाणं, तीसे णं मणिपेडियाए उवरिं महं एगं देवसयणिज्जं विउब्बइ सयणिज्जवन्नओ जाव पडिरुये, तत्थ णं से सके देविंदे देवराया अहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं दोहि य अणिएहिं नट्टाणिएण य गंधव्वाणिएणय सदि महयाहयन जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ, जाहे ईसाणे देविंदे देवराया दिव्वाई जहा सके तहा ईसाणेऽवि निरवसेसं, एवं सर्णकुमारेऽवि, नवरं पासायवडेंसओ छ जोयणसयाई उदंडवत्तेणं तिन्नि जोयणसयाई विक्खंभेणं मणिपेडिया तहेव अट्ठजोयणिया, तीसे णं मणिपेढियाए उबरिं एत्थ णं महेगे सीहासणं विउब्वह सपरिवारं भाणियव्वं, तत्थ णं सर्णकुमारे देविंदे देवराया बावत्तरीए सामाणियसाहस्सीहिं जाब चउहिं बावत्तरीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि य बहूहिं सर्णकुमारकप्पवासीहिं वैमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे महया जाव विहरइ, एवं जहा सणकुमारे तहा जाव पाणओ अम्बुओ, नवरं जो जस्स परिवारो सो तस्स भाणियव्वो, पासायउचत्तं जं सएस २ कप्पेसु विमाणाणं उच्चतं अद्धद्धं वित्थारो जाव अच्चुयस्स नव जोयणसयाई उदंउच्चत्तेणं अपंचमाई जोयणसयाई विक्खंभेणं, तत्थ णं अबुए देविंदे देवराया दसहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव विहरइ, सेसं तं चैव सेवं भंते! २ति । ५१९ ॥ श० १४३०६ ॥ रायगिहे जाव परिसा पडिगया, गोयमादी जमणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं बयासी चिरसंसिट्टो सि मे गोयमा ! चिरसंधुओ सि मे गोयमा चिरपरिचिओ सि मे गोयमा चिरजुसिओ सि मे गोयमा चिराणुगओ सि मे गोयमा चिराणुवत्ती सि मे गोयमा ! अनंतरं देवलोए अनंतरं माणुस्सए भवे, किं परं ?, मरणा कायस्स भेदा इओ चुत्ता दोऽवि तुला एगट्ठा अविसेसमणाणता भविस्सामो। ५२० । जहा णं भंते! वयं एयमहं जाणामो पासामी तदा णं अणुत्तरोववाइयावि देवा ३०३ श्रीभगवत्यं सतं.४
मुनि दीपरत्नसागर

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