Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । ४३४। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयावि आलंभियाओ नगरीओ संखवणाओ चेइयाओ पडिनिक्वमहत्ता बहिया जणवयविहार विहरइ, तेणं कालेणं आलंभिया नाम नगरी होत्था वन्नओ, तत्थ णं संखवणे णामं चेइए होत्था वन्नओ, तस्स णं संखवणस्स० अदूरसामंते पोग्गले नाम परियायए परिवसति रिउब्येदजजरवेद जाव नएस सुपरिनिट्ठिए छटुंछट्टेणं अणिक्वित्तेणं तबोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ जाव आयावेमाणे चिहरति, तए णं तस्स पोग्गलस्स छटुंछटेणं जाव आयावेमाणस्स पगतिभट्याए जहा सिवस्स जाब विभंगे नामं अनाणे समुप्पने, से णं तेणं विभंगेणं नाणेणं समुप्पन्नेणं बंभलोए कप्पे देवाणं ठिति जाणति पासति, तए णं तस्स पोग्गलस्स परिव्वायगस्स अयमेयारुवे अभत्थिए जाव समुप्पज्जित्था-अस्थि णं ममं अइसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साई ठिती पं०, तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया. दस सागरोक्माई ठिती पं०, तेण परं गेच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, एवं संपेहेति त्ता आयावणभूमीओ पचोरहइ त्ता तिदंडकुंडिया जाव धाउरत्ताओ य गेण्हइ त्ता जेणेव आलंभिया णगरी जेणेव परिवायगावसहे तेणेव उवागच्छइ त्ता भंडनिक्खेवं करेति त्ता आलंभियाए नगरीए सिंघाडगजावपहेसु अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाब परुवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साई तहेब जाव वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, तए णं आलंभियाए नगरीए एएणं अभिलावणं जहा सिवस्स तं चेव जाब से कहमेयं मन्ने एवं?, सामी समोसढे जाच परिसा पडिगया, भगवं गोयमे तहेव भिक्खायरियाए तहेव बहुजणसई निसामेइत्ता सव्वं भाणियब्वं जाव अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि एवं भासामि जाव परूवेमि-देवलोएसु ण देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साई ठिती पं०, तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया जाव उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई ठिती पं० तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, अस्थि णं भंते! सोहम्मे कप्पे दवाई सवनाइपि अवनाईपि नहेब जाव हंता अत्थि, एवं ईसाणेऽवि, एवं जाव अचुए एवं गेवेजविमाणेसु अणत्तरविमाणेसुवि, इसिपम्भाराएऽवि जाव हंता अस्थि,तएण सा महांतमहालिया जाव पाडगया, तएणं आलोभयाए नगरीए सिंघा जाव सब्बदुक्खप्पहीणे, नवरं तिदंडकुंडियं जाव धाउरत्तवत्थपरिहिए परिवडियविभंगे आलंभियं नगरि मझ० निग्गच्छति जाव उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमति त्ता तिदंडकूडियं च जहा खंदओ जाव पवइओ सेसं जहा सिवस्स जाव अब्वाबाहं सोक्खं अणुभवंति सासयं सिद्धा । सेवं भंते २त्ति।४३५॥ उ०१२ इति एकादशं शतकं ॥卐 फी 'संखे १ जयंति२ पुढवी ३ पोग्गल ४ अइवाय ५ राहु ६ लोगे ७ य । नागे ८ देवे९य आया १० बारसमसए दसुहेसा ॥७२॥ तेणं कालेणं० सावत्थीनाम नगरी होत्था वन्नओ, कोट्ठए चेइए वन्नओ, तत्थ णं सावत्थीए नगरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासगा परिवसंति अड्ढा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विहरति, तस्स णं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नामं भारिया होत्था सुकुमाल जाय सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव विहरइ, तत्थ णं सावत्थीए नगरीए पोक्खली नाम समणोबासए परिवसइ अइढे अभिगय जाव विहरइतेणं कालेणं० सामी समोसढे परिसा निग्गया जाव पज्जुवा०, तए ण ते समणावासगा इमासे जहा आलांभयाए जाच पज्जुवासन्ति, तए णं समणे भगवं महावीरे तेसि समणोबासगाणं तीसे य महति धम्मकहा जाव परिसा पडिगया, तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा निसम्म हतद्रा समणं भ० म००नत्ता पसिणाई पुच्छति त्ता अट्ठाई परियादियंति ना उद्याए उट्टेति त्ता समणस्स भ० महा० अंतियाओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमन्ति त्ता जेणेव सावत्थी
पहारेत्थ गमणाए।४३६। तए णं से संखे समणोवासए ते समणोवासए एवं वयासी-तुझे णं दवाणुप्पिया! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह, तपणं अम्हा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभुजेमाणा परिभाएमाणा पक्खियं पोसई पडिजागरमाणा विहरिस्सामो, तए णं ते समणोवासगा संखस्स समणोबासगस्स एयमदं विणएणं पडिसुणंति, तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स अयमेयारूवे अब्भत्थिए जाव समुप्पज्जित्था-नो खलु मे सेयं तं विउलं असणं जाव साइमं अस्साएमाणस्स० पक्खियं पोसह पडिजागरमाणस्स विहरित्तए, सेयं खलु मे पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुकमणिसुबन्नस्स बयगयमालावन्नगविलेवणस्स निक्वित्तसत्यमसलस्स क्खियं पोसह पडिजागरमाणस्स विहरित्तएंत्तिकट्टु एवं संपहात त्ता जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव सए गिहे जेणेव उप्पला समणोवासिया
व उवागच्छदत्ता पासहसालं अणुपविसइत्ता पोसहसालं पमजइत्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेडेड । त्ता दम्भसंथारग संथरति सा दब्भसंथारगं दुरूहइ त्ता पोसहसालाए पोसहिए पंभयारी जाव पक्खियं पोसह पडिजागरमाणे विहरति, तए णं ते समणोवासगा जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव साई गिहाई तेणेव उवागच्छन्ति त्ता विपुलं असणं पाणं खाइमं साइम उवक्खडार्वति त्ता अनमने सहावेति त्ता एवं बयासी-एवं खल देवाणप्पिया! अम्हेहिं से विउले असण२७८ श्रीभगवत्यंग-सत-१२
मुनि दीपरत्नसागर
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