Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 139
________________ POGSABPICHOTEM8P8425788PNA8786230MISSYCOST-853YAEYASAMPIARY85288ARBPASAASPIRNOTES खेजपएसीया अलोगं पडुच्च अणंतपएसीया लोगं पडुच्च साइया सपज्जवसिया अलोगं पडुच्च साइया अपज्जवसिया छिन्नमुत्तावलिसंठिया पं०, जमा जहा इंदा, नेरइया जहा अग्गेयी, एवं जहा इंदा तहा दिसाओ चत्तारि जहा अम्गेई तहा चत्तारिवि विदिसाओ, विमला णं भंते ! दिसा किमादीया• पुच्छा जहा अग्गेयीए, गोयमा ! विमला गं दिसा रुयगादीया रुयगप्पवहा चउप्पएसादीया दुपएसविच्छिन्ना अणुत्तरा लोगं पडुच सेसं जहा अग्गेयीए नवरं स्यगसंठिया पं०,एवं तमावि । ४७९ किमियं भंते ! लोएत्ति पचइ ?, गोयमा ! पंचविकाया, एस णं एवतिए लोएत्ति पञ्चद, तं०-धम्मत्थिकाए अहम्मत्यिकाए जाव पोग्गलत्थिकाए, धम्मत्थिकाएक भंते! जीवाणं किं पवनति ?, गोयमा! धम्मस्थिकाएणं जीवाणं आगमणगमणभासुम्मेसमणजोगा बइजोगा कायजोगा जे यावन्ने तहप्पगारा चला भावा सय्ये ते धम्मस्थिकाएणं पवत्तंति, गइलक्षणे णं धम्मस्थिकाए,अहम्मस्थिकाएक जीवाणं कि पवत्तति?. गोयमा! अहम्मत्थिकाएणं जीवाणं ठाणनिसीयणतुबट्टण मणस्स य एगत्तीभावकरणता जे यावन्ने थिरा भावा सव्वे ने अहम्मस्थिकायेण पवत्तंति. ठाणलक्षणे णं अहम्मत्थिकाएं, आगासस्थिकाए णं भंते ! जीवाणं अजीवाण य किं पवत्तति?, गोयमा ! आगासस्थिकाए णं जीवदव्याण य अजीवदवाण य भायणभूए-एगेणवि से पुन्ने दोहिवि पुन्ने सयंपि माएजा। कोडिसएणवि पुन्ने कोडिसहस्सपि माएजा ॥७४॥ अवगाहणालक्षणे णं आगासस्थिकाए, जीवस्थिकारणं भंते! जीवाणं कि पवत्तति ?, गोयमा! जीवत्यिकाए णं जीवे अणताणं आभिणिबोहियनाणपज्जवाणं अणंताणं सुयनाणपज्जवाणं एवं जहा बितियसए अधिकायउद्देसए जाच उवओगं गच्छति, उवओगलक्खणे णं जीवे, पोग्गलस्थिकाएणं पुच्छा. गोयमा ! पोग्गलस्थिकाएणं जीवाणं ओरालियचेउवियआहारए तेयाकम्मए सोइंदियचक्खिदियघाणिदियजिभिदियफासिंदियमणजोगवयजोगकायजोगआणापाणणं च गहणं पवत्तति, गहणलक्षणे णं पोग्गलस्थिकाए।४८०। एगे भंते ! धम्मस्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मस्थिकायपएसेहिं पुढे ?. गोयमा ! जहन्नपदे तीहिं उक्कोसपदे छहिं, केवतिएहि अहम्मस्थिकायपएसेहिं पुढे ?, गोयमा ! जहन्नपए चउहिं उक्कोसपए सत्तहिं, केवतिएहिं आगासस्थिकायपएसेहिं पुढे ?, गोयमा! सत्तहिं, केवतिएहिं जीवस्थिकायपएसेहिं पुढे?, गोयमा ! अणतेहिं, केवतिएहि पोग्गलस्थिकायपएसेहिं पुढे ?, गोयमा ! अणंतेहिं, केवतिएहिं अद्धासमएहिं पुढे ?, सिय पुढे सिय नो पुढे, जइ पुढे नियमं अणंतेहि, एगे भंते! अहम्मस्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे ?, गोयमा ! जहन्नपए चाहिं उकोसपए सत्तहिं सेसं जहा धम्मस्थिकायस्स, एगे भंते! आगासस्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे ?. गोयमा! सिय पुढे सिय नो पुढे, जब पुढे जहन्नपदे एकेण वा दोहिं वा तीहि या चउहिं वा उक्कोसपए सत्तहि, एवं अहम्मस्थिकायप्पएसेहिवि, केवतिएहि आगासन्थिकाय?, छहिं, केवतिएहिं जीवस्थिकायपएसेहिं पुढे ?, सिय पुढे सिय नो पुढे जइ पुढे नियमं अणंतेहिं, एवं पोग्गलस्थिकायपएसेहिवि अद्धासमएहिवि । ४८१ । एगे भंते ! जीवन्धिकायपएसे केवतिएहिं धम्मस्थित पच्छा, जहन्नपदे चउहिं उकोसपए सत्तहिं, एवं अहम्मत्यिकायपएसेहिथि, केवतिएहिं आगासस्थि०१. सत्तहि, केवतिएहिं जीवथि०१, सेसं जहा धम्मन्थिकायस्स, एगे भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपए? एवं जहेब जीवस्थिकायस्स, दो भंते ! पोग्गलस्थिकायप्पएसा केवतिएहिं धम्मधिकायपएसेहिं पुट्ठा ?, जहन्नपए छहिं उकोसपए चारसहिं, एवं अहम्मस्थिकायप्पएसेहिवि, केवतिएहिं आगासस्थिकाय?, पारसहि, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स, तिन्नि भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा केवतिएहिं धम्मत्थि.?, जहन्नपए अट्ठहिं उकोसपए सत्तरसहि, एवं अहम्मस्थिकायपएसेहिवि, केवतिएहिं आगासस्थि ?, सत्तरसहिं, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स, एवं एएणं गमेणं भाणियव्वं जाच दस, नवरं जहन्नपदे दोन्नि पक्विवियव्वा उक्कोसपए पंच, चत्तारि पोग्गलस्थिकायस्स०?,जहन्नपए दसहिं उको बावीसाए, पंच पुग्गल०?, जहः बारसहिं उक्कोस सत्तावीसाए, छ पोग्गल, जह० चोद्दसहि उको बत्तीसाए, सत्त पो०?, जहन्नेणं सोलसहिं उको० सत्ततीसाए, अट्ट पो०?, जहन्न अट्ठारसहिं उक्को० बायादीसाए, नव पो०?, जहन्न वीसाए उक्को० सीयालीसाए, इस, जह० चावीसाए उको बावन्नाए, आगासस्थिकायस्स सव्वत्थ उक्कोसगं भाणियव्यं, संखेज्जा भंते! पोग्गलथिकायपएसा केवतिएहि धम्मत्थिकायपएसेहिं पुट्ठा ?, जहन्नपदे तेणेव संखेजएणं दुगुणेणं दुरूवाहिएणं उक्कोसपए तेणेव संखेजएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं, केवतिएहि अधम्मथिकायपएसेहिं ?,एवं चेव, केवतिएहिं आगासस्थिकाय?, तेणेव संखेजएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं, केवइएहिं जीवत्थिकाय?, अणंतेहिं, केचइएहिं पोग्गलत्विकाय?, अणतेहिं, केवइएहिं अदाममएहिं ?, सिय पुढे सिय नो पुढे जाव अणंतेहिं, असंखेज्जा भंते ! पोग्गलत्थिकायप्पएसा केवतिएहिं धम्मस्थि०१, जहन्नपए तेणेव असंखेजएणं दुगुणेणं दुरूवाहिएणं उक्को तेणेव असंखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं, सेसं जहा संखेजाणं जाव नियम अणंतेहि, अणंता भंते ! पोग्गलत्यिकायपएसा केवतिएहिं धम्मस्थिकाय?, एवं जहा असंखेजा तहा अर्णतावि निरवसेस, एगे भंते! अद्धासमए केवतिएहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे?, सत्तहिं, केवतिएहिं अहम्मत्थि०?, एवं चेव, एवं आगासस्थिकायपएसेहिवि, केवतिएहिं २९५ श्रीभगवत्यंगं - सन मुनि दीपरत्नसागर

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