Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
पनवेति, तं०-धम्मत्थिकार्य अधम्मत्थिकार्य आगासस्थिकायं जीवत्यिकायं, एगं च णं समणे णायपुत्ते पोग्गलस्थिकायं रुविकार्य अजीवकायं पनवेति, से कहमेयं मने एवं?, तेणं कालेणं० समणे भगवं महावीरे जाव गुणसिलए चेइए समोसढे जाव परिसा पडिगया, तेणं कालेणं० समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूईणामं अणगारे गोयमगोतेणं एवं जहा चितीयसए नियंठुहेसए जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापज्जतं भत्तपाणं पडिग्गहित्ता रायगिहाओ जाब अतुरियमचवलमसंभंतं जाब रियं सोहेमाणे तेसिं अन्नउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वीइवयति, तए णं ते अन्नउत्थिया भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीइवयमाणं पासंति त्ता अन्नमन्नं सद्दावेति त्ता एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमा कहा अविपकडा अयं च णं गोयमे अम्हें अदूरसामंतेणं बीइबयइ तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं गोयमं एयमह पुच्छित्तएत्तिकटु अन्नमन्नस्स अंतिए एयमझु पडिसुणेति त्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेच उवागच्छंति त्ता तं भगवं गोयम एवं वयासी-एवं खलु गोयमा! तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे णायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं० धम्मस्थिकायं जाव आगासस्थिकाय, तं चेव जाव रूविकार्य अजीवकायं पन्नवेति से कहमेयं भंते गोयमा ! एवं ?, तए से भगवं गोयमे ते अन्नउथिए एवं वयासी-नो खलु वयं देवा. गुप्पिया ! अत्थिभावं नस्थित्ति वदामो नस्थिभावं अस्थित्ति वदामो, अम्हे णं देवाणुप्पिया ! सव्यं अस्थिभावं अत्थीति वदामो सव्वं नत्यिभावं नत्थीति क्यामो, तं चेय (प्र. वेद) सा खलु तुम्भे देवाणुप्पिया ! एयम४ सयमेव पचुवेक्खहत्तिक१ ते अन्नउथिए एवं वयति त्ता जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे एवं जहा नियंलुईसए जाव भत्तपाणं पडिदंसेति त्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ त्ता नच्चासन्ने जाव पजवासति, तेणं कालेणं० समणे भगवं महावीरे महाकहापडिवन्ने यावि होस्था, कालोदाई य तंदेसं हव्यमागए, कालोदाईति समणे भगवं महावीरे कालोदाई एवं वयासी-से नूर्ण कासोदाई ! अन्नया कयाई एगयओ सहियाणं समुवागयाण समिविट्ठाणं तहेव जाव से कहमेयं मने एवं?, से नूणं कालोदाई ! अत्थे समझे ?, हंता अस्थि, तं सच्चे णं एसमढे कालोदाई ! अहं पंचस्थिकार्य पनवेमि, तं०-धम्मस्थिकार्य जाब पोग्गलस्थिकाय, तत्थ णं अहं चत्तारि अस्थिकाए अजीवकाए पन्नवेमि तहेव जाव एगं च णं अहं पोग्गलत्थिकायं रूविकायं पन्नयेमि, तए णं से कालोदाई समणं भगवं महावीरं एवं वदासी-एयंसि णं भंते धम्मत्थिकायंसि अधम्म
स्थिकायंसि आगासस्थिकायंसि अरुविकायंसि अजीवकायंसि चक्किया केई आसइत्तए वा सइत्तए वा चिट्टइत्तए वा निसीइत्तए वा तुयट्टित्तए वा, णो तिणढे०, कालोदाई! एगंसि Bणं पोग्गलस्थिकायंसि रूविकायंसि अजीवकायंसि चकिया केई आसइत्तए वा सइत्तए वा जाव तुयट्टित्तए वा, एयंसि णं भंते! पोग्गलस्थिकार्यसि रूविकायंसि अजीवकायंसि
जीवाणं पावा कम्मा पावकम्मफलविवागसंजुत्ता कज्जति ?, णो इणट्टे समझे कालोदाई!. एयंसिणं भंते ! जीवस्थिकायंसि अरूविकायंसि जीवाणं पावा कम्मा पावफरविवागसंजुत्ता कज्जति?,हंता कजति. एत्य ण से कालोदाई संबुद्धे समर्ण भगवं महावीरं वंदइ नमसइत्ता एवं वयासी-इच्छामिण भंते! तुम्भं अंतियं धम्म निसामेत्तए एवं जहा खंदए तहेव पव्वइए तहेव एक्कारस अंगाई जाब विहरइ।३०४॥ तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई रायगिद्दाओ नयराओ गुणसिलया चेइया पडिनिक्खमति त्ता पहिया जणवयविहारं विहरइ, तेणं कालेणं० रायगिह नाम नगरे गुणसिले णामं चेइए होत्या, तए णं समणे भगर्व महावीरे अन्नया कयाई जाय समोसढे परिसा पडिगया, तए णं से कालोदाई अणगारे अन्नया कयाई जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ त्ता समणं भगवं महावीर वंदइ नमसइ ता एवं क्यासी-अस्थि णं भंते! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कजति ?, इंता अस्थि, कहण्णं भंते ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कति?, कालोदाई ! से जहानामए केई पुरिसे मणुन्ने थालीपागसुदं अट्ठारसक्जणाउलं विससंमिस्सं भोयणं भुजज्जा तस्स ण भायणस्स आवाए भदए भवात तआ पच्छा परिणममाण २ दुरूवत्ताए दुगंधत्ताए जहा महासवए जाय भुजो २ परिणमति एवामेव कालोदाई! जीवाणं पाणाइवाए जाब मिच्छादसणस तस्स णं आवाए भदए भवइ तओ पच्छा परिणममाणे २ दुरूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमति, एवं खलु कालोदाई ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवाग जाव कजति, अत्थि णं भंते! जीवाणं कल्लाणा कम्मा कहाणफलविवागसंजुत्ता कजंति ?, हंता अस्थि, कहन्नं भंते! जीवाणं काडाणा कम्मा जाव कजति ?, कालोदाई ! से जहानामए केई पुरिसे मणुन्न थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाकुलं ओसहसंमिस्सं भोयणं भुजेज्जा तस्स णं भोयणस्स आवाए नो भदए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे २ सुरूवत्ताए सुवन्नत्ताए जाव सुहत्ताए नो दुक्खत्ताए मुज्जो २ परिणमति, एवामेव कालोदाई ! जीवाणं पाणाइवायवेरमणे जाव परिम्गहवेरमणे-कोहविवेगे जाव मिच्छादसणसडविवेगे तस्स णं आवाए नो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे २ सुरूवत्ताए जाव नो दुक्खत्ताए भुजो२ परिणमइ, एवं खलु कालोदाई! जीवाणं कालाणा कम्मा जाव कजंति।३०५। दो भंते! पुरिसा सरिसया जाव सरिसभंडमत्तोवगरणा अन्नमन्नेणं सदि अगणिकायं समारंभंति तत्थ णं एगे पुरिसे अगणिकायं उज्जालेति एगे पुरिसे अगणिकायं निब्बावेति, एएसिंणं भंते ! २२२ श्रीभगवत्यंग-सत
मुनि दीपरत्नसागर
EHRS-809-105-20PICHROPICSAP8ABPG4ISHIGARIPORPOMEPASPRMISHRASHI64897548PZEATBPCLASPIRNARSPE
37MACHCHISPESASPTEMBPERSPICHARPASSPARSASSPRINGSMSPICHROPICARPEARANCHISPENSPIANSF-84280

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248